Book Title: Aptavani Shreni 08
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 345
________________ ३०६ आप्तवाणी-८ यह तो बुद्धिशालियों को बुद्धि से ऐसा भासित होता है कि आत्मा कुछ करता है, इसलिए वह भोगता है। अब, पूरा ही जगत् बुद्धि के अधीन है। क्योंकि जब तक 'मैं' है, अहंकार है, तब तक बुद्धि के अधीन है, तब तक बुद्धि के 'श्रू' देखता रहता है। अतः सत्य वस्तु का निरीक्षण नहीं हो पाता। बाकी, 'एक्जेक्ट' ज्ञान को जगत् में ज्ञानी खुला नहीं करते, फिर भी हम खुला बता देते हैं इस दुनिया को कि 'एक्जेक्ट' ज्ञान से जानना हो तो 'आत्मा ने ऐसा कुछ किया ही नहीं है'। यह जो दिखता है न, वैसा कुछ भी हुआ ही नहीं है। यह तो सिर्फ बिलीफ़ ही रोंग है। अतः 'रोंग बिलीफ़' यदि कभी कोई बदल दे, तो वापस जैसा था, वैसे का वैसा ही हो जाएगा। आत्मा का कोई भी भाग बिगड़ा ही नहीं है, उसे कोई भी परेशानी आई ही नहीं। जो 'बिलीफ़ रोंग' हुई है, उस बिलीफ़ को कोई पूरा पलट दे तो वापस जैसा था, वैसे का वैसा ही हो जाएगा, खुद के स्वरूप में आ जाएगा और खुद की शक्तियाँ विकसित हो जाएँगी। मात्र बिलीफ़ बदल गई है। बाकी, आत्मा ऐसा-वैसा कुछ करता ही नहीं। आत्मा तो परमात्मा ही है। आत्मा में ऐसा एक भी 'करने का' गुण होता न, तो वह सांसारिकता से कभी भी मुक्त ही नहीं हो पाता। आत्मा खुद निर्लेप ही है, असंग ही है, लेकिन यदि समझ में आ जाए तो, नहीं तो भगवान की बात आपको समझ में नहीं आएगी। ऐसा है, सुननेवाले बुद्धिशाली और बोलनेवाले ज्ञानी, अब इन दोनों का मेल किस तरह बैठेगा? सुननेवाला बुद्धिशाली है, वह बुद्धि के नाप से नापता है, जब कि ज्ञानी तो ज्ञानी के नाप से बोलते हैं। वह इन तक पहुँचेगा किस तरह? फिर सब अपनी-अपनी भाषा में समझ जाते हैं। यह तो सिर्फ 'रोंग बिलीफ़' ही बैठ गई है। वास्तव में 'एक्जेक्टली फिगर' देखने जाएँ तो आत्मा को पूरी संसारदशा में 'रोंग बिलीफ़' ही थी, और कुछ भी नहीं। यह 'रोंग बिलीफ़' निकल गई तो बाकी कुछ हुआ ही नहीं है। कर्म आत्मा को नहीं चिपकते। 'रोंग बिलीफ़' से प्रकृति उत्पन्न हो गई है। अभी शीशे के सामने आप जाओ तो शीशे से क्या आपको कहना

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