Book Title: Aptavani Shreni 08
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 330
________________ आप्तवाणी-८ २९१ प्रश्नकर्ता : अभी तो हम जिज्ञासु हैं, कुछ ज्ञान और अज्ञान का भेद जानने की इच्छा है, इसलिए आए हैं । दादाश्री : वह तो अभी आपकी जिज्ञासु दशा है, लेकिन पूरे दिन क्या जिज्ञासु रहते हो? प्रश्नकर्ता : लगभग हाँ । दादाश्री : नहीं, पूरे दिन जिज्ञासु नहीं रहते । वह तो, ऐसा है अभी आपकी दशा जिज्ञासु है । यदि अस्पताल में बैठे होंगे न तो पेशन्ट जैसी दशा रहेगी। जहाँ-जहाँ जो अवस्था होती है न, उस अवस्था को आप मान्य करते हो तो वैसी दशा हो जाती है आपकी । लेकिन 'आप वास्तव में कौन हो' उसका पता नहीं लगाना चाहिए था अब तक ? प्रश्नकर्ता : लगाना चाहिए था । दादाश्री : तो क्यों नहीं लगाया? प्रश्नकर्ता : उसकी खोजबीन चल ही रही है, साहब । दादाश्री : कहाँ पर खोज रहे हो? प्रश्नकर्ता : पढ़कर, सत्संग से, ज्ञानीपुरुष से मिलकर, इस तरह से खोज चल ही रही है । दादाश्री : वह खोज ठीक है । ऐसी खोज करते-करते ही आज आप 'ज्ञानीपुरुष' के पास आ सके। अब आपको 'ज्ञानीपुरुष' से कहना है, आपको जो-जो चाहिए वह माँग लेना । जो वस्तु चाहिए वे सभी चीजें माँग लेने की आपको छूट है, जितना चाहिए उतना 'टेन्डर' भरने की छूट है। I ऐसा है, बाहर मूली लेने जाएँ तो मूली भी मूल्यवान है, उस मूली के दस पैसे माँगते हैं, और यह तो अमूल्य चीज़ है। यानी कि आपको क्या लेना है? इसकी ‘वेल्यू' ही नहीं हो सकती न? अर्थात् 'यह लेना है', उसका खुद को लक्ष्य रखना चाहिए। उसके लिए आपको तैयारी करके रखनी चाहिए। स्कूल में इनाम मिल रहा हो तो भी बच्चे कितनी तैयारी

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