Book Title: Aptavani Shreni 08
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 338
________________ आप्तवाणी-८ फिर से। बाह्यमुखी माल मिला कि वे बाहर चली जाती हैं, देर ही नहीं लगती न! और ये इन्द्रियाँ तो, कभी भी किसीकी भी चैन से बैठी ही नहीं हैं। और यह इन्द्रियों का तालाब तो किसीका भी बँध नहीं पाया है । लेकिन इसके बावजूद वे खाना खा गए और फिर कहते हैं कि सदा उपवासी हैं। वे कौन? I २९९ प्रश्नकर्ता : दुर्वासा। दादाश्री : हाँ, और कृष्ण भगवान के लिए क्या कहा है कि सदा ब्रह्मचारी। क्योंकि मूल स्थिति में आने के बाद कोई चीज़ उन्हें स्पर्श नहीं कर सकती। अर्थात् इन्द्रियों को तो भले ही अभिमुख करो या और कुछ करो या सन्मुख करो, वह सभी कुछ, वह तो एक तरह की कसरत है । उससे शरीर अच्छा रहता है, मन ज़रा अच्छा रहता है, लेकिन 'अपना' काम नहीं हो पाता। ऐसा है, यदि हम यहाँ से आगे के स्टेशन का रास्ता नहीं जानते हों, तब तक घूमते रहें, उससे क्या स्टेशन प्राप्त हो जाएगा? इसके लिए किसीसे पूछना तो पड़ेगा ही न? इस अज्ञान के कारण ही कुछ भी काम नहीं हो पाता। ‘खुद कौन है और किससे बँधा हुआ है' ऐसा सब ज्ञानीपुरुष से जान लेना चाहिए। ... वे सभी मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट प्रश्नकर्ता : अब अंतरमुख दशा में हमें अंदर से कोई जवाब देता है कि, ‘यह तू गलत कर रहा है और ऐसा सब', तो वह आत्मा कहता है ? दादाश्री : वह आत्मा नहीं है, वह तो 'टेपरिकार्ड' है । यह बाहर जैसा 'टेपरिकार्ड' है, वैसा ही अंदर 'ओरीजिनल टेपरिकार्ड ' है । आप उसे आत्मा कहते हो? बड़े - बड़े ऑफिसर भी कहते हैं कि, 'मेरा आत्मा बोल रहा है।' अरे, क्या वह आत्मा है? वह तो 'टेपरिकार्ड' है। प्रश्नकर्ता : अगर आत्मा नहीं बोल रहा है, तो ऐसा कौन कहता है कि 'यह तू गलत कर रहा है'?

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