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आप्तवाणी-८
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है उसे खुद स्वीकार कर लेता है कि 'मुझे वेदना हो रही है।' यह सारा तो 'मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट' है। इसमें कुछ लिमिट तक वेदना हो, तब तक आत्मा अंदर रहता है। और बहुत वेदना हो, जबरदस्त वेदना हो तो बेहोश हो जाता है और उससे भी भयंकर वेदना हो तो आत्मा बाहर निकल जाता है। ___सेठ को क्या हुआ था' पूछे तो कहेंगे, ‘फेल हो गए।' अरे, 'स्कूल' में तो वे पास होते थे न ! लेकिन यहाँ पर 'फेल' हो गए। यह तो सारा 'मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट' है। और अंदर जोरदार घबराहट हो तो आत्मा निकल जाता है। उसे 'हार्ट अटैक' कहते हैं न? वह 'फ़ौजी अटैक' तो अलग है और यह 'अटैक' अलग। तो इस 'अटैक' में तो आत्मा ही पूरा बाहर निकल जाता है। हिन्दुस्तान में लोगों की ऐसी दशा तो होती होगी? जो भी नियम हैं, उनके विरुद्ध चले, इसलिए यह दशा उत्पन्न हुई है।
सभी असरों का कारण अहंकार ही प्रश्नकर्ता : जब शरीर को दुःख होता है, तब क्या जीव को दु:ख होता है?
दादाश्री : हाँ, जब शरीर को दुःख होता है तब जीव को दुःख होता है। क्योंकि इस शरीर को वह जीव 'मेरा है' ऐसा मानता है और फिर 'मैं ही हूँ यह' ऐसा कहता है, इसलिए उसे असर हुए बगैर रहता ही नहीं।
__ अब जिसे 'यह' ज्ञान है, उस पर मन का और वाणी का, ये दोनों असर नहीं होते। देह का असर तो उस पर भी होता है। अभी दाढ़ दुःख रही हो न, तो ज्ञानी को भी असर होता है! अतः इस बॉडी में इफेक्टिव
चेतन है। लेकिन 'ज्ञान' है इसलिए कॉज़ेज़ उत्पन्न नहीं करते वे। उसका हिसाब समभाव से, शांति से चुका देते हैं।
प्रश्नकर्ता : तो फिर आत्मा निकल जाने के बाद शरीर को दुःख क्यों नहीं होता?