Book Title: Aptavani Shreni 08
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 332
________________ आप्तवाणी-८ २९३ कि संसार बाधक नहीं है, अज्ञान बाधक है। अज्ञान गया तो फिर क्या परेशानी है? अहो! आत्मा को जानने का मतलब तो... बाकी ये सब लोग जिसे आत्मा समझते हैं, वे मिकेनिकल आत्मा को आत्मा समझते हैं। वही भ्रांति है न! और फिर हम पूछे, 'आपको समकित हो गया?' तब कहेंगे, 'नहीं, समकित तो नहीं हुआ।' आत्मा जानने के बाद बाकी क्या रहा? वह क्षायक समकित से ऊपर, केवळज्ञान के नज़दीक पहुँच गया कहलाएगा। यानी कि आत्मा जाना जा सके ऐसा नहीं है। इसलिए कृपालुदेव ने लिखा है न बड़ी पुस्तक पर कि, 'जेणे आत्मा जाण्यो तेणे सर्व जाण्यु।' यह जो कहने का था, वह ऊपर लिखा है। और यदि नहीं जान लिया तो अंदर माथापच्ची कर। अनंत जन्मों से माथापच्ची की है और फिर से वही कर, ऐसा कहते हैं। फिर भी ऐसे करता रह, तो कभी न कभी सही वस्तु मिल जाएगी। ..ज्ञानी के भेदज्ञान से जाना जा सकता है प्रश्नकर्ता : अनात्मा को जाने बगैर आत्मा को जान सकते हैं? दादाश्री : जो आत्मा को जान ले तो वह अनात्मा को जान सकता है, लेकिन वह शब्द से ही जाना जा सकता है। उससे अनात्मा को नहीं जाना जा सकता। इसलिए हमने ऐसा कहा है न कि, "मन-वचन-काया की तमाम संगी क्रियाओं से 'मैं' बिल्कुल असंग हूँ।" वे सभी संगी क्रियाएँ अनात्मा है। 'मन-वचन-काया के तमाम लेपायमान भावों से मैं सर्वथा निर्लेप ही हूँ।' ये जो सारे लेपायमान भाव मन में आते हैं, वह सारा अनात्मा विभाग है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् अनात्मा और आत्मा, वे दोनों एक साथ जाने जा सकते हैं? दादाश्री : दोनों एक साथ तो नहीं जाने जा सकते। वह तो हम यहाँ पर ज्ञान देते हैं तो सबकुछ अलग हो जाता है। लेकिन सबकुछ ज्यों का त्यों जानना तो पड़ेगा न!

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