Book Title: Aptavani Shreni 08
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 326
________________ आप्तवाणी-८ २८७ क्या नहीं है, जानें किस तरह? प्रश्नकर्ता : अब उस 'नेगेटिव साइड' के बारे में बताइए न मुझे कि 'नेगेटिव साइड' को किस तरह जानें? दादाश्री : उसका तो मैं आपको, उस दिन सब खुलासा कर दूंगा। उस घड़ी सभी नेगेटिव का खुलासा हो जाएगा। फिर इन बातों में मज़ा आएगा! उसके बाद, मैं जो कहना चाहता हूँ, वह बात आप तक पहुँचेंगी। यानी इन लोगों से कहता हूँ कि 'क्या नहीं हो' वह जानकर लाओ। तब वे कहते हैं कि, 'मुझे क्या नहीं हूँ' वह जानना है। तो मैं कह देता हूँ, 'माइ', इतना निकाल दे। 'मेरे हाथ' वह तू नहीं है। 'मेरा सिर' तू नहीं है, 'मेरी आँखें' उनमें तू नहीं है, ये सब माइनस करता रह। फिर मन को माइनस कर, माइ माइन्ड, माइ इगोइज़म, माइ स्पीच, सबकुछ माइनस कर। तब कहता है कि, 'तब तो मेरा कल्याण ही हो जाएगा। हो ही जाएगा तुरंत।' तो कर न, लेकिन यह माइनस किस तरह से करे बेचारा? वह पाप भस्मीभूत हो जाने चाहिए न! । __यह पूरा जगत् कैसा है? ऐसा करे तो ऐसे फँस जाता है, ऐसा करे तो ऐसे फँस जाता है। यानी सबकुछ सापेक्ष है, एक आए तो फिर उसे दूसरी अपेक्षा रहती है। अतः जब हम पाप भस्मीभूत कर देते हैं, उसके बाद 'यह हूँ' और 'यह नहीं हूँ', वह समझ में आता है। बाकी, 'क्या नहीं हूँ' वह हमने एक फॉरिनर को दिया था। हम लोनावाला गए थे न, वहाँ पर वे लोग आए थे। वे कहने लगे, 'हमें कुछ दीजिए।' तब मैंने कहा कि, 'सेपरेट आई एन्ड माइ विथ ज्ञानीज़ सेपरेटर', तो मेरा सेपरेटर मैं तुझे नहीं दूंगा, लेकिन मैं तुझे सेपरशेन का अंदर का रास्ता बता देता हूँ। उस तरह से तू 'मेरा' माइनस करता जा, यह माइनस कर, यह माइनस कर। लेकिन अब वह प्राप्ति किस तरह करे? उसके पाप नष्ट हुए बिना वह प्राप्ति किस तरह से कर पाएगा? क्योंकि ये जो पाप हैं न, वे इस ज्ञान पर आवरण ला देते हैं। इसलिए पहले पाप नष्ट होने चाहिए। वे पाप हैं, इसलिए याद नहीं रहता न! और इन्हें शुद्धात्मा

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