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आप्तवाणी-८
यहाँ कुछ लोग मुझे मिले थे। मुझे कह रहे थे कि, 'मेरे गुरु ने दिया है।' मैंने कहा कि, 'करेक्ट है, गलत नहीं है। यह आपको आपके गुरु ने दिया है, लेकिन इससे मिला क्या अभी तक, वह बताओ मुझे। कोई आपको छेड़े तो चिढ़ नहीं जाते आप?' तब वे कहने लगे, 'वह तो नहीं जाता। लेकिन वह तो बहुत समय बीत जाने पर होगा न।' मैंने कहा कि, 'नहीं, स्वरूप अगर हाथ में आ गया तो देर ही नहीं लगेगी।' तब उसने कहा, 'किसलिए रुका हुआ है?' तब मैंने कहा कि, "आप क्या नहीं हो', वह आपको बताया नहीं है। और क्या हो', आपको इतना ही बताया है। लेकिन यदि 'क्या नहीं हो' बताया होता तो काम चलता।" यह कौनसे गुरु जानते हैं कि 'क्या नहीं हो?' लो, बताओ देखते हैं?
अभी, 'खाने-पीने में क्या तू नहीं है?' उसमें तो 'एडजस्ट' कर लिया कि 'मैं शुद्ध-बुद्ध ही हूँ'। लेकिन अब तू क्या नहीं है, उसे ढूँढ निकाल न! या फिर वैसे का वैसा ही है? मैं भी शुद्ध-बुद्ध और इलायची भी शुद्ध-बुद्ध है? क्या नहीं है अब? इसका विश्लेषण हुए बिना कुछ हो नहीं पाता और सब भटकते हैं। अनंत जन्मों से यही भटकन चल रही है।
नरसिंह महेता ने बहुत विश्लेषण किया क्योंकि वे बहुत विचारवंत थे! नागर क्या ऐसे-वैसे थे? 'वे कुछ ऐसे-वैसे नहीं थे। उन्होंने बहुत विश्लेषण किया था और फिर वे बोले कि, 'ज्याहां लगी आत्मा तत्व चिन्ह्यों नहीं, त्यहां लगी साधना सर्व जूठी।' देखो, वे खुद की साधना को झूठी कहते हैं ! तब फिर, 'आत्मतत्व जानना, इसका मतलब क्या है?''क्या है' उसे जानना और क्या नहीं है' उसे जानना, इसीको आत्मतत्व कहते हैं। 'क्या है' उसे नहीं जानोगे तो हर्ज नहीं है, लेकिन क्या नहीं है' इतना आप जान लोगे तो मेरे लिए बहुत हो गया, क्योंकि क्या नहीं है' इतना जान लोगे तो फिर क्या है' वह अध्याहार (बाकी बचा हुआ) रहा। और अध्याहार तो सच बात ही है, उसे नहीं जानोगे तो चलेगा। लेकिन ये 'क्या नहीं हो' इतना जानना चाहिए। जब कि लोगों ने 'क्या है' वह जान लिया
और फिर उसे गाते रहते हैं। लड्डू खाते समय, वापस.... ऐसा होता है न? अभी तक यही चला है, इसलिए अनंत जन्म होते ही रहते हैं।