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आप्तवाणी-८
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प्रश्नकर्ता : आप रक्षण देते हैं, लेकिन और किसीके पास ऐसी कसौटी करने गए तो?
दादाश्री : और किसी जगह पर ऐसा करना मत और करो तो पास में सौ एक रुपये तैयार रखना। पैर दबाना और कहना, 'साहब, मेरा दिमाग़ घूम गया है।' ऐसा-वैसा करके वापस पलट जाना और सौ रुपये की चीज़ लाकर दे देंगे न, तो साहब खुश हो जाएँगे और पैर दबा देना। क्योंकि अहंकारी को खुश करने में बिल्कुल देर ही नहीं लगती । मीठी-मीठी बातें करो तो भी खुश हो जाता है
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प्रश्नकर्ता : सामान्य लोगों को ऐसी सब कसौटी किए बगैर किस तरह से पता चल सकता है?
दादाश्री : उनकी वाणी स्याद्वाद होती है, किसी धर्म का किंचित् मात्र अहित नहीं हो, ऐसी होती है, उनकी वाणी किसीको भी दुःखदायी नहीं होती और उनके वाणी, वर्तन, और विनय मनोहर होते हैं, अपने मन का हरण करें, ऐसे होते हैं।
'दिस इज द केश बेन्क ऑफ डिवाइन सोल्युशन', कभी भी बिल्कुल भी उधार नहीं, नकद ही है । जो चाहिए वह नकद मिलेगा यहाँ
पर !
जो नकद आत्मज्ञान दे दें, तो वे 'प्रत्यक्ष' 'ज्ञानी'! बाकी, जहाँ पर उधार हो वहाँ पर ‘प्रत्यक्ष' 'ज्ञानी' हैं ही नहीं । नकद दे देते हैं, 'केश' दे देते हैं। इसलिए फिर परीक्षा करने को रहता ही नहीं है न ! जो बैन्क 'केश पेमेन्ट' करता हो, उसकी परीक्षा की ज़रूरत है? जो बैन्क ऐसा कहता हो कि ‘छह महीनों के बाद पैसे दिए जाएँगे' तो आपको परीक्षा करनी पड़ती है कि आस-पासवालों को पूछना पड़ता है। बाकी, जहाँ पर नकद ही देते हों, वहाँ पर उसकी परीक्षा क्या करनी ?
प्रश्नकर्ता : जीव को ख़याल कैसे आएगा कि यह नकद है या नहीं? दादाश्री : वह तो तुरन्त ही ख़याल आ जाएगा। नकद का ख़याल