________________
२६६
आप्तवाणी
-८
नहीं आए तो अंदर आत्मा है ही नहीं । अगर देह में आत्मा है तो ख़याल आएगा ही। बाकी, यदि खुद को टेढ़ा चलना हो तो चले। उसकी उसे छूट होती ही है न! या फिर 'ज्ञानी' के पास से ज्ञान लेने के बाद में उँडेल देना हो तो भी छूट है। उसे कोई मनाही नहीं है ! जिसे नकद समझ में आएगा, वह कोई उँड़ेलेगा ही नहीं न!
वस्तु प्राप्ति की प्रतीति....
प्रश्नकर्ता : 'मुझे' वस्तु मिली है या नहीं, उसकी प्रतीति किस तरह से होगी?
दादाश्री : 'आत्मा' की प्रतीति 'आपको' हो ही जाएगी है न! आप 'जो' हो, 'वही' प्रतीति 'आपको' हो जाएगी न। अभी जो भ्रांति है, आपका वह अस्तित्व ही चला जाएगा। 'मै चंदूभाई हूँ' यह तो भ्रांति है। 'आप' वास्तव में जो ‘आत्मा' हो, 'आप' 'वही आत्मा' बन जाते हो, इसलिए फिर भ्रांति रहेगी ही नहीं । और इसलिए फिर पूछने को रहा ही नहीं न! 'चंदूभाई' तो चले जाएँगे, 'चंदूभाई' अपने घर चले जाएँगे। ये 'चंदूभाई' शंकावाले हैं और वे खुद ही चले जाते हैं । 'मैं चंदूभाई हूँ', यह ‘रोंग बिलीफ़' है।
पड़ेगा?
बँधे, बिलीफ़ द्वारा...
अब करोड़ों जन्म हो जाएँगे, फिर भी 'राइट बिलीफ़' नहीं बैठ सकेगी । जहाँ पर एक भी ‘रोंग बिलीफ़' नहीं जाती, वहाँ पर एक भी 'राइट बिलीफ़' बैठेगी ही किस तरह से ? अर्थात् एक भी ' रोंग बिलीफ़' हटती नहीं और 'राइट बिलीफ़' बैठती नहीं! पूरी दुनिया में एक भी मनुष्य की एक भी रोंग बिलीफ़' हटती नहीं। इतने जन्मों से भगवान महावीर के शास्त्र पढ़ते आ रहे हैं, फिर भी एक भी ‘रोंग बिलीफ़' हटती नहीं और दिन बदलते नहीं । शास्त्र पढ़ने से ठंडक रहती है लेकिन बिलीफ़ नहीं बदलती। बिलीफ़ तो, 'ज्ञानीपुरुष', जो कि मोक्षदाता पुरुष हैं, वे ही बदलवा सकते हैं।
प्रश्नकर्ता : मोक्ष प्राप्त करना हो तो 'ज्ञानीपुरुष' के पास जाना