________________
आप्तवाणी-८
२७१
प्रश्नकर्ता : लेकिन हम ऐसा कहते हैं न, कि मरने के बाद सबकुछ छोड़कर जाना है, तो फिर सब ‘स्टॉक' में किस तरह रहता है?
दादाश्री : वह तो स्थूल सब छोड़ देना पड़ता है। सूक्ष्म में तो, कषायरूपी परिवार सहित सबकुछ साथ में ही जाएगा। यह स्थूल यानी जो हमें आँखों से दिखे वैसा, आँखों से नहीं दिखे वैसा और माइक्रोस्कोप से भी नहीं दिखे, वैसा भी स्थूल होता है। वह सब यहाँ पर छोड़कर जाना है और सूक्ष्म भाग पूरा साथ में जाएगा, खुद के सभी कर्म बाँधकर वहाँ पर साथ में ले जाते हैं।
बिलीफ़ बदलने से, छूटे कर्म प्रश्नकर्ता : फिर यह ‘रोंग बिलीफ़' फ्रेक्चर किस तरह से होती हैं?
दादाश्री : वह आपको नहीं करनी है, वह हमें कर देनी है। वह आपसे नहीं होगी। अगर आपसे हो सकती तब तो अनंत जन्मों से आप हो ही न! यानी कि वह डॉक्टर का काम है। आपको तो एक घंटे के लिए डॉक्टर को देह सौंप देनी है कि 'भाई, आपको जो ऑपरेशन करना हो वह कर दो मेरा, और मेरा कुछ निबेड़ा ला दो।' तो काम हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : कर्म हैं और मान्यताएँ हैं, इन दोनों का क्या संबंध है? क्योंकि कोई एक गलत बिलीफ़ टूट गई, उस घड़ी एकदम हल्कापन अनुभव करता है। उस घड़ी कर्म से निवृत्त हुआ कहलाएगा?
दादाश्री : तब तो 'रोंग बिलीफ़' से निवृत्त होता है। प्रश्नकर्ता : तो उतने कर्म भस्म हो गए या नहीं हुए?
दादाश्री : नहीं, वे कर्म ही बदलते हैं न! बिलीफ़ निवृत्त हो जाए तो कर्म शांत हो जाते हैं, वह शाता वेदनीय में गया।
प्रश्नकर्ता : ये जो कर्म चिपके हैं, वे?
दादाश्री : मान्यता बदली तो जो सभी कर्म चिपके हुए हैं न, वे सब अलग होने लगते हैं। मान्यता बदली तो कर्म सब अलग होते जाते