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आप्तवाणी-८
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दादाश्री : और वे 'ज्ञानीपुरुष' मोक्षदाता पुरुष होने चाहिए। मोक्ष का दान कौन दे सकता है? जो खुद निरंतर मोक्ष में रहते हों, वे मोक्ष का दान दे सकते हैं। अगर 'रोंग बिलीफ़' में ही हों, तब फिर भले ही कुछ भी करोगे, शास्त्र पढ़ोगे-करोगे तो भी 'रोंग बिलीफ़' ही मज़बूत होती रहेगी, 'रोंग बिलीफ़' को ही पोषण मिलता रहेगा।
और इस संसार में जन्म से ही लोग 'उसे' अज्ञान का प्रदान करते हैं कि 'यह बच्चा है, बच्चे ये तेरे पापा हैं, ये तेरी मम्मी' ऐसा करके अज्ञान का प्रदान किया जाता है, फिर 'उसे' पूरी 'रोंग बिलीफ़' बैठ जाती है। वह बिलीफ़ कोई फ्रेक्चर नहीं कर सकता। बाकी, यों ही अगर कहें कि 'आप शद्ध हो', ऐसा कैसे चलेगा? 'आपकी' समझ में गेड़ बैठनी चाहिए, तभी यह 'रोंग बिलीफ़' फ्रेक्चर होगी। नहीं तो 'रोंग बिलीफ़' फ्रेक्चर होगी नहीं, और तब तक 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह कोई एक्सेप्ट करेगा ही नहीं। अभी तक पूरी ज़िन्दगी 'मैं चंदूभाई हूँ, मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा कर-करके एकएक परमाणु में यह घुस गया है। अब इसे निकालना, इस ‘रोंग बिलीफ़' को फ्रेक्चर करना, वह तो 'ज्ञानीपुरुष' ही कर सकते हैं।
अंत में आत्मरूप होने पर ही मुक्ति प्रश्नकर्ता : ऐसा भी कहा जाता है कि एक मिनट आत्मा का विचार करे तो भी वह संसार से मुक्त हो जाएगा?
दादाश्री : वह आत्मरूप हो जाए तो संसार से मुक्त हो जाएगा। बाकी, जहाँ आत्मा संबंधी विचार करे, वहाँ पर आत्मा है ही नहीं। ऐसे जो विचार करता है न, वे तो आत्मा में जाने के रास्ते हैं।
प्रश्नकर्ता : लेकिन आत्मरूप होने की दशा उत्पन्न हो जाए तो संसार का भ्रम टूट जाता है क्या?
__ दादाश्री : भ्रम धीरे-धीरे छूटता है। लेकिन जो उसका पुराना हिसाब है न, इसलिए भ्रम हुए बगैर रहेगा नहीं न! वह तो जब नया संवरपूर्वकवाला हो जाएगा तो काम का। अतः एक मिनट के लिए भी आत्मा हो गया तो फिर वह हमेशा के लिए रहेगा ही।