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आप्तवाणी-८
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दे, और सभी के दु:ख खुद ले ले, तब मानो कि छुटकारा हुआ। आत्मज्ञानी को संसार के दुःख स्पर्श नहीं करते।
आत्मा प्राप्त हो जाने के बाद पाँच डिग्री बुखार चढ़ा हो, फिर भी आत्मा जुदा रहता है। बुख़ार चढ़े तो भी आत्मा जुदा रहता है, उसे तो हर वक्त आत्मा का अनुभव रहता है।
एक आदमी को पक्षाघात हो गया था, तब कहने लगा, 'ये लोग मुझसे मिलने आए हैं, लेकिन मैं खुद ही, जिसे पक्षाघात हुआ है उसे देख रहा हूँ न, कि इस पैर में ऐसा हुआ है, इस हाथ में ऐसा हुआ है, यह सब मैं भी इसका देखता रहता हूँ!' अर्थात् खुद भी देखनेवाला और जो लोग आए हैं, वे भी देखनेवाले! ऐसा इस ज्ञान का प्रभाव है। पक्षाघात हो तब भी ऐसा प्रभाव है, और ज्ञान नहीं हो तो 'मुझे पक्षाघात हो गया, मुझे बुख़ार चढ़ा', वह फिर मर जाने की निशानी है।
___अब 'मुझे हुआ' कहे, तो 'रिपेयरिंग' कौन करेगा? और 'मैं' इसमें से मुक्त हो जाए तो अपने आप 'रिपेयर' हो जाएगा, ऐसा ही है। कुदरत का नियम ऐसा है कि तुरन्त 'रिपेयर' हो ही जाता है।
अतः आत्मा प्राप्त हो गया कब कहा जा सकता है? उसके आपको लक्षण बताता हूँ कि आत्मा प्राप्त होने के बाद अगर शरीर दुःख रहा हो, सिर दुःख रहा हो, फिर भी अंदर समाधि रहती है। बाहर गालियाँ दे रहा हो तो भी समाधि रहती है, दु:ख में भी समाधि रहती है, वह आत्मज्ञान की निशानी है। ऐसा होता नहीं है इस काल में, फिर भी यहाँ पर हो गया है।
आत्मा प्राप्त होने के बाद में अभी जो अनुभव हैं, वे सभी खत्म हो जाएँगे। 'यह मेरा बेटा है और ये मेरे मामा है' ये सब अनुभव खत्म हो जाएँगे। 'यह मैंने किया और यह फ़लाने ने किया', वे सब अनुभव भी खत्म हो जाएँगे। अभी आपको जो भी कुछ अनुभव हो रहे हैं न, वे सब खत्म हो जाएँगे।
खुद को परमात्मपन का अनुभव होता है कि 'मैं परमात्मा हूँ।' वहाँ