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आप्तवाणी-८
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होगा? कि इस देह जितना ही। अब संपूर्ण ज्ञान हो और शरीर छूट जाए, तो उस लाइट का प्रमाण कितना हो जाएगा? पूरे प्रमेय में, पूरे ब्रह्मांड में वह लाइट फैल जाएगी। प्रमाता प्रमेय के अनुपात में फैल जाता है। जैसा भाजन हो, उस अनुसार लाइट फैल जाती है! अर्थात् केवळज्ञान होने के बाद यदि देह छूट जाए तो यह जो प्रमाता है, वह पूरे प्रमेय में फैल जाएगा, खुद का लाइट पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा। अभी प्रमाण कितना है? तब कहे, 'इस देह जितना ही है।' |
घड़े में लाइट रखी हो तब वह तीव्र होती है, और जब वह घड़ा फूट जाता है तो रूम में लाइट फैल जाती है, फिर वह लाइट हल्की हो जाती है। यानी यह लाइट जितनी अधिक फैलती है, उतनी अधिक हल्की होती जाती है। क्योंकि यह तो पौद्गलिक प्रकाश है। और आत्मा की लाइट हल्की नहीं होती, वह लाइट तो चाहे जितनी भी फैले, पूरे ब्रह्मांड में फैल जाए, तब भी वैसी की वैसी ही रहती है।
सापेक्ष दृष्टि से सर्वव्यापक यानी 'आत्मा सर्वव्यापक है' ऐसे सभी सापेक्ष वाक्य हैं, उन्हें लोग निरपेक्ष मानकर उल्टा ही अर्थ निकालते हैं और चुपड़ने की दवाई पी जाते हैं। यह सापेक्ष है, इसका क्या मतलब है? कि सभी मनुष्य मरते हैं तब आत्मा सर्वव्यापक नहीं हो जाता। जब केवळी (केवळज्ञान प्राप्त व्यक्ति) या तीर्थंकरों का निर्वाण होता है, तब उनका जो आत्मा बाहर निकलता है वह पूरे ब्रह्मांड में प्रकाशमान हो जाता है, सर्वव्यापक हो जाता है। उस दृष्टि से, सापेक्ष दृष्टि से आत्मा सर्वव्यापक है। हमेशा के लिए सर्वव्यापक नहीं है। जब कि लोग तो उसे सर्वव्यापक, सर्वव्यापक, सर्वव्यापक करके गाते ही रहते हैं। बाकी, इस मनुष्य में जब तक अज्ञान है, तब तक उसका उजाला बाहर नहीं आता। वह तो जब 'फुल' ज्ञान हो जाए तब वह पूरे ब्रह्मांड में प्रकाशमान होता है। और आपमें भी आत्मा तो वैसा ही है, लेकिन वह बिल्कुल आवृत ही है।
जब आत्मा मोक्ष में जाता है, तब पूरा प्रकाश सभी ओर ब्रह्मांड में