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आप्तवाणी-८
अब ये अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं । इसलिए उत्पाद, व्यय और ध्रौव लिखा है। उसे फिर दूसरे शब्दों में लिखा है, उत्पन्नेवा, विघ्नेवा और ध्रुवेवा।
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बाकी इस दुनिया में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, ये सभी रूपक हैं। तो कुछ समय तक इन रूपकों से बहुत फ़ायदा हुआ। और वही रूपक अभी नुकसानदेह हो गए हैं। इसलिए हम ये रूपक निकाल देना चाहते हैं कि भाई, ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसा कोई है ही नहीं । तू है और भगवान हैं, दो ही हैं । और कोई है ही नहीं । और यमराज जैसा कोई है ही नहीं। ये सारी बेकार की बातें तेरे मन में से निकाल दे। यह मैं ' जैसा है वैसा' कहना चाहता हूँ क्योंकि अभी रूपकों की क्या ज़रूरत हैं? रूपकों की तो कब ज़रूरत थी? कि जब गाय रखी और दूध खाकर वापस ध्यान में बैठ जाते थे! लेकिन उनकी बुद्धि 'कल्चर्ड' नहीं थी । वह काल अच्छा था इसलिए इच्छित वस्तु अपने आप ही घर बैठे मिल जाती थी । तब फिर लोगों की बुद्धि ‘कल्चर्ड' हो सकती थी क्या ? और अभी तो चीनी नहीं मिलती, घी अच्छा नहीं मिलता, फ़लाना नहीं मिलता, देखो बुद्धि 'कल्चर्ड' हो गई है अभी तो! ऐसी 'कल्चर्ड' बुद्धि तो किसी भी काल में नहीं थी । लेकिन यह बुद्धि विपरीत है । इसे सम्यक् करनेवाले चाहिए । इसी विपरीत बुद्धि को ज्ञानी सम्यक् कर देते हैं । प्रकाश है, लेकिन उसका उपयोग उल्टे रास्ते पर करते हैं। उसका सही रास्ते पर उपयोग करे, ऐसा कर देनेवाला चाहिए। बाकी, अभी तो लोग विचारशील हो गए हैं। पहले तो ऐसे सब विचारशील थे ही नहीं। और सत्युग में विचार करने का समय ही नहीं था। सत्युग में तो हर एक वस्तु घर बैठे आ जाती है, तब किसका विचार करने को रहा? यानी कि कलियुग में ही असल में विचार करना पड़ता है I
यह सब बनावट है। इस जगत् में कोई ऐसा मनुष्य पैदा नहीं हुआ है कि जिसे संडास जाने की स्वतंत्र शक्ति हो । ये तो सभी रूपक रखे गए हैं। यानी कि ये जो कुछ भी लिखी गई हैं, वे सभी गलत बातें हैं। जो बुद्धि से समझ में नहीं आए, तो समझना कि वह गलत है । लोगों को बुद्धि में किसलिए समझ में आता है? तब कहते हैं, 'अपने लोग ढीठ (मैली बुद्धिवाले) हो गए हैं।' फॉरिन के साइन्टिस्टों को पूछो न, तो उनकी