________________
१९८
आप्तवाणी-८
यहाँ से कब मुक्त होगा? जब यह भेदबुद्धि टूट जाएगी तो मुक्त हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : मुक्त होने के बाद वह क्या करता है?
दादाश्री : फिर सिद्धगति हो गई। वहाँ पर निरंतर परमानंद में रहेगा। यह देह है तब तक बोझा रहा करता है। इस देह का भी बोझा है। जिस देह से सुख नहीं भोगना है, वह देह ज्ञानियों के लिए बोझ समान होती है। लेकिन और कोई चारा ही नहीं है न! जब तक उसकी 'डिस्चार्ज लिमिट' रहती है, तब तक छुटकारा ही नहीं हो सकता न!
द्वंद्वों ने दिए बंधन प्रश्नकर्ता : आत्मा मोक्ष में चला जाता है, उसके बाद वह देहधारण नहीं करता है, लेकिन हर एक आत्मा मोक्ष में ही है न?
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। अनंत आत्मा इस तरह संजोगों में फँसे हुए हैं। वे मोक्ष में जाने के लिए, खुद के स्वभाव में आने का प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन यह जो अनात्मा है, वह उसे स्वभाव में आने ही नहीं देता। और अनात्मा भी पहले से ऐसे का ऐसा ही है। यानी ये सभी आत्मा कहीं मोक्ष में नहीं पहुंच गए हैं।
प्रश्नकर्ता : यानी आत्मा ने अभी तक मोक्ष देखा ही नहीं है?
दादाश्री : देखा ही नहीं है। बाकी, खुद का स्वभाव ही मोक्ष है। लेकिन ये संयोग कैसे हैं? द्वंद्व रूपी हैं। यह जो जड़ विभाग है, अनात्म विभाग है, वह द्वंद्व रूपी में है। द्वंद्व अर्थात् फ़ायदा-नुकसान, सुख-दु:ख, राग- द्वेष, यानी इन सभी द्वंद्वों के स्वभाव का खुद अपने आप में आरोपण कर देता है, इसलिए उसे बंधन रहता है। इन संयोगों का दबाव कम हो जाए तो फिर 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाते हैं, निमित्त मिल जाएँ, तब मोक्ष होता है। वर्ना यों ही तो मोक्ष नहीं हो जाता। फिर भी सभी आत्मा मोक्ष की तरफ़ ही जा रहे हैं। लेकिन फिर जैसे निमित्त मिलें, वैसे ही वह चक्कर लगाता है फिर। यहाँ पर मनुष्यों में ही चक्कर लगाने हैं फिर से, या फिर जहाँ पर भी चक्कर