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आप्तवाणी-८
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प्रश्नकर्ता : एक समय में एक सौ आठ जीव मोक्ष में जाते हैं, वह कहाँ से है?
दादाश्री : सभी पंद्रह क्षेत्रों में से मिलाकर एक सौ आठ जीव मोक्ष में जाते हैं।
जैसे अपने यहाँ पुलिसवाले की पार्टी जाती है न, वह चार की जोड़ी एक के पीछे एक ऐसे चलती ही रहती है, जैसे प्रवाह जा रहा हो उस तरह से चलता ही रहता है, उसी तरह यह एक सौ आठ जीवों का प्रवाह इस तरफ़ से व्यवहार में से मोक्ष में जाता है, सिद्धक्षेत्र में जाता है । तब उतने ही दूसरे जीव अव्यवहार राशि में से व्यवहार राशि में आ जाते हैं, यानी कि व्यवहार में एक भी जीव कम - ज़्यादा नहीं होता, एक भी जीव बढ़ता नहीं है, घटता नहीं है। व्यवहारवाले जीव किसे कहते हैं? जिनका नाम पड़ चुका है, वे सभी व्यवहार जीव हैं, जिसका नाम नहीं दिया गया, वह जीव व्यवहार में नहीं आया है । और जिसका नाम गया, वह सिद्धक्षेत्र में चला गया।
नमो सिद्धाणं, की भजना ध्येय स्वरूप से
प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं न कि ऊपर कोई बाप भी नहीं है, लेकिन ऊपर सिद्धलोक तो है न?
दादाश्री : वह तो सिद्धलोक है, सिद्धक्षेत्र है, और वे लोग जो मोक्ष में चले गए हैं न, वे तो मुक्त हो चुके हैं, वे अपनी सुनते भी नहीं और किसीका कुछ कहते भी नहीं, किसीके लिए लागणी भी नहीं और कुछ भी नहीं। वे तो उनके खुद के सुख में मस्त ! वे हमारे किसी भी काम में नहीं आते। वे अपने ध्येय के रूप में हैं । 'नमो सिद्धाणं' कहा, वह सिर्फ ध्येय की तरह है कि ' भाई, हमें यह दशा चाहिए ।'
प्रश्नकर्ता : हम लोग कहते हैं न कि 'नमो सिद्धाणं', तो वह नमस्कार उन्हें पहुँचते हैं क्या?
दादाश्री : उन्हें नहीं पहुँचे फिर भी अपने अंदर सिद्ध बैठे हैं, उन्हें तो पहुँच गया। अंदर जो बैठे हैं न, वह आत्मा सिद्ध ही है न! हमें तो