________________
२४०
आप्तवाणी
-८
जा गधा बनना। आधा मील दूर था और बाईस मील घूमा, तो भी 'दादर' नहीं आया, कोई और ही गाँव आया । तब वह कहता है, 'बाईस मील का चक्कर लगाया, उसमें से साढ़े इक्कीस मील का तो लाभ हुआ, चलो।' तब कहते हैं, ‘नहीं, तूने घूमा उससे हमारी रोड घिसी न, उसके पैसे ला।' उसका फाइन देना पड़ता है, यानी कि ऐसा है। आत्मा प्राप्त हो सके, ऐसा नहीं है और आत्मा कभी भी किसीको मिला ही नहीं । सब कहते हैं, 'हम ब्रह्मस्वरूप हैं, ब्रह्मस्वरूप हैं।' उन्हें जब गाली दें न, तब पता चलेगा, तुरन्त फन फैलाएँगे।
अध्यात्म के बाधक कारण
प्रश्नकर्ता : आत्मसाक्षात्कार के लिए यह जाति, पंथ वगैरह बाधक हैं क्या?
दादाश्री : उसके लिए कुछ भी बाधक नहीं है। आत्मसाक्षात्कार किसी भी मनुष्य को हो सकता है।
प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन यह पंथ, जाति वगैरह उसमें बाधक तो होगा न?
दादाश्री : वह बाधक तो किस प्रकार से है कि जब तक जाति का अंहकार है। पंथ का अंहकार है, जाति का अहंकार है, वह सब बाधक है और जो कोई इस बाधक में से निकलकर और 'ज्ञानीपुरुष' को ढूँढ ले तो उसका हल आ जाता है। बाकी ये मत और पंथवाले अभी तो कितना ही भटकेंगे। क्योंकि भगवान के वहाँ पर मत, जाति किसीकी भी ज़रूरत नहीं है। पंथ या वेष की भी वहाँ पर ज़रूरत नहीं है ।
प्रश्नकर्ता : आवरणों, कपड़ों से लेकर संसार के बाल-बच्चे, ये सभी आध्यात्मिक के लिए बाधक हैं?
दादाश्री : ये सब वास्तव में बाधक नहीं हैं, लेकिन इन सब दबाव बहुत होते हैं न, तो कुछ हद तक ये बाधक हैं और एक हद के बाद ये बाधक नहीं हैं, ऐसी कुछ लिमिट है । मुझे कोई भी वस्तु बाधक नहीं