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आप्तवाणी-८
खुद के गुण जाने नहीं हैं। खुद के गुण जानने के लिए ये सभी लोग 'यहाँ' पर आते हैं। क्योंकि उन्हें एन्डलेस (अंतहीन) सुख चाहिए। यह टेम्परेरी सुख नहीं चाहिए।
अभी जो गुण हैं न, ये 'चंदूभाई' के गुण हैं, ये 'आपके' गुण नहीं हैं। 'चंदूभाई' और 'आप' दोनों अलग हो। इस शरीर में 'आप' भी अलग हो और 'चंदूभाई' भी अलग हैं। हमें दोनों अलग दिखते हैं, चंदूभाई भी दिखते हैं और आप भी दिखते हो। यानी कि "वास्तव में 'रियली स्पीकिंग' आप कौन हो" इसका डिसीज़न लेना चाहिए। इस शरीर में आपका क्षेत्र अलग है। आप अपने क्षेत्र में रहो तो आप क्षेत्रज्ञ हो। और अगर क्षेत्र में नहीं रहो तो क्षेत्राकार हो जाते हो। क्षेत्रज्ञ रहकर यह सब जानना है कि इस क्षेत्र में क्या हो रहा है। क्षेत्रज्ञ का अर्थ क्या है? क्षेत्र को जाननेवाला। यानी कि आपको निरंतर जानते ही रहना है कि 'क्या हो रहा है, कौन बोल रहा है' यह सब आपको अपने क्षेत्र में रहकर जानना ही है सिर्फ।
'मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा निर्णय होना, वही आत्मा का अनुभव है। और ऐसा आत्मअनुभव होना, वह क्या कोई ऐसी-वैसी बात है?
वह गुप्तस्वरूप, अद्भुत! अद्भुत इस दुनिया में जानने जैसा क्या है? आपको क्या लगता है? प्रश्नकर्ता : स्व-स्वरूप।
दादाश्री : बस! उसके अलावा दुनिया में जानने जैसी अन्य कोई वस्तु है ही नहीं। सिर्फ स्व-स्वरूप को ही जानने जैसा है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन वह अद्भुत दर्शन क्या होगा?
दादाश्री : अद्भुत, वह तो गुप्तस्वरूप है। जो जगत् से पूर्ण रूप से गुप्त है, गुप्त स्वरूप है। पूरा जगत् ही जिसे नहीं जानता, वह गुप्त स्वरूप, वह अद्भुत ही है। उससे अधिक अद्भुत वस्तु इस दुनिया में अन्य कोई