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आप्तवाणी-८
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प्रश्नकर्ता : कुछ कण समुद्र तक पहुँचते हैं, कुछ बीच में ही रह जाते हैं, इसका क्या कारण है?
दादाश्री : वह सब ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स' पर आधारित है। यानी कि जब तक भ्रांति है तब तक उसकी मुक्ति नहीं होती।
कर्तापद, वही भ्रांति प्रश्नकर्ता : इन सभी को भ्रांति हो गई है, उस भ्रांति को टालने का उपाय क्या है? बताइए।
दादाश्री : भ्रांति किसकी हो गई है? वह आपको समझ में आया न? प्रश्नकर्ता : खुद ने खुद को जाना नहीं है।
दादाश्री : बस, इतनी ही भ्रांति हुई है। खुद अपने आप से ही अनजान हो गया है इतनी ही भ्रांति हुई है 'इसे', और कोई भ्रांति नहीं है।
प्रश्नकर्ता : जो भ्रांति हो गई है, वह भ्रांति कौन-से साधनों से जाएगी? कृपा करके आप वह समझाएँगे?
दादाश्री : कर्म का कर्ता है, इसलिए भोक्ता है। यह क्या है? कि कर्म को खुद आधार देता है कि 'यह मैंने किया।' इस वर्ल्ड में कोई जीव कुछ कर ही नहीं सकता। जो ‘करते हैं', ऐसा कहते हैं, वही भ्रांति है,
और वही अहंकार है। यह तो अहंकार खुद का दिखावा करता है। बाकी, यह सब तो 'इट हेपन्स' है। सबकुछ हो ही रहा है। जो हो रहा है उसे कहता है, 'मैंने किया, मैं कर रहा हूँ।' यह तो हो रहा है। वह अगर कुछ नहीं करे न तो भी सुबह उठते ही चाय-पानी सबकुछ तुरन्त मिल ही जाएगा उसे।
अब भ्रांति कौन-से साधन से जाएगी? वह खुद कौन है' ऐसा यदि 'ज्ञानीपुरुष' उसे बता दें तो वह भ्रांति चली जाएगी, बस। यानी कि 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ, तब यह भ्रांति जाएगी।
इस जगत् में 'मैं करता हूँ' और 'मैं जानता हूँ' दोनों भावों को मिला