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आप्तवाणी-८
प्रश्नकर्ता : यों तो 'मैं' एक 'मनुष्य' हूँ।
दादाश्री : मनुष्य तो, इस देह का मनुष्य जैसा फोटो दिखता है, उसे मनुष्य ही कहेंगे। देह का आकार ही मनुष्य का है। 'आप' 'मनुष्य' भी नहीं कहलाते। यह देह आपकी है?
प्रश्नकर्ता : देह मेरी नहीं है।
दादाश्री : इस देह का कोई असर नहीं होता? सर्दी लगती है या गर्मी लगती है?
प्रश्नकर्ता : देह को लगती है।
दादाश्री : देह को लगती है, लेकिन आपको नहीं लगता न? इस देह का असर होता है न? असर किसलिए होता है? जो खुद का होता है उसका असर होता है। जो पराई वस्तु है, उसका असर नहीं होता। आपको समझ में आता है न? यानी कि हमें असर किसका होगा? जिसे खुद का माना हो उस चीज़ का ही असर होता है। 'यह बॉडी मेरी है' ऐसा कहता है, इसलिए उसका असर होता है। नींद में भी ऐसा भान रहता है। नींद में भी कहेगा कि, 'यह देह मेरी है। यह नाम भी मेरा है।' अब जो आपका है, क्या उसे छोड़ देंगे?
यानी कि यह 'मैं' छूट सके ऐसा नहीं है। 'मैं' तो सबसे बड़ा भूत है। कुछ लोग कहते हैं, 'यह देह मेरी नहीं है, यह बेटा मेरा नहीं है, पत्नी मेरी नहीं है, कोई मेरा नहीं है।' इस तरह सारी माथाकूट करते रहते हैं। लेकिन फिर, अंत में तू तो है ही न? अब कहाँ जाएगा? और इन मन-वचन-काया
को कहाँ फेंक देगा? इस पुद्गल को कहाँ फेंकेगा? अन्य सभी पुद्गल को फेंक सकता है, लेकिन इसे कहाँ फेंकेगा? वह तो जब 'ज्ञानीपुरुष' के पास जाओगे तो वे मुक्त कर देंगे। आपको समझ में आया न?
यह समझने की कोशिश फलेगी क्या? प्रश्नकर्ता : यों तो मैं भी आत्मा को समझने की ही कोशिश कर रहा हूँ।