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आप्तवाणी-८
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। लेकिन इसमें गलत होगा तो नहीं चलेगा। सच्चा होगा न, तो सभी को क़बूल करना ही पड़ेगा। जो सच्चा होगा, वह किसीसे भी रोका नहीं जा सकेगा। उनका गलत है इसलिए छोड़ देना पड़ेगा न!
फिर भी यह दुनिया है, अतः ये लोग जो कुछ भी कहते हैं, वह उनका डेवलपमेन्ट वैसा है। और इतने तक अगर डेवलपमेन्ट नहीं होगा न तो यह क्रियाकांड और यह सब नहीं होगा और बुद्धि बढ़ेगी नहीं। बुद्धि के बढ़ने के बाद जलन बढ़ती जाती है और जलन बढ़ने के बाद ही उसे मोक्ष की ज़रूरत पड़ती है।
मनुष्य की बुद्धि जितनी बढ़ती है, उसके 'काउन्टर वेट' में जलन उतनी ही बढ़ती जाती है। हाँ, वेदांत वगैरह सब बुद्धि बढ़ाने के साधन हैं। वे बुद्धि को 'डेवलप' करते रहते हैं, और जब बुद्धि बढ़ती है तब फिर जलन उत्पन्न होती है। तब कहता है, 'अब मैं कहाँ जाऊँ?' तब कहते हैं, 'वीतराग के पास जा।' लेकिन भगवान ने दोनों को एक्सेप्ट किया है। वेदांतमार्ग से और जैनमार्ग से, दोनों मार्गों से समकित होता है। दोनों मार्गों द्वारा, उनके खुद के स्वतंत्र मार्ग में रहकर समकित हो सकता है।
आत्मा को बंधन... प्रश्नकर्ता : तो फिर आत्मा खुद स्वतंत्र और मुक्त है, सच्चिदानंद है?
दादाश्री : स्वतंत्र नहीं है। यह वापस आपको किसने कहा कि आत्मा स्वतंत्र है?
प्रश्नकर्ता : शास्त्र ऐसा कहते हैं कि आत्मा स्वतंत्र है।
दादाश्री : नहीं, सच्चिदानंद स्वरूप है, लेकिन स्वतंत्र नहीं है। इसलिए तो यह हाल हुआ है। स्वतंत्र होता तब तो अभी मुक्ति ही हो जाती न! देर ही क्या लगती? यह तो ऐसा बँधा हुआ है, कि अगर लोहे की मोटी जंजीर होती न, उससे बँधा हुआ होता तो हम 'गेस कटिंग' करके