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आप्तवाणी
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : यानी कि मूल आत्मा खुद सगुण ही है, अनंत गुणों का धाम है। स्वाभाविक गुण जो हैं वे बहुत सारे हैं, लेकिन प्रकृति के जो गुण हैं, उनमें से एक भी गुण आत्मा में नहीं है, इसलिए निर्गुण है । इन लोगों ने स्वीकार किया है कि ये गुण आत्मा में नहीं हैं, इसलिए आत्मा निर्गुण है। इसके बजाय लोग क्या समझ बैठे कि आत्मा निर्गुण ही है । अरे, जगत् में पत्थर भी निर्गुण नहीं है । कोई भी वस्तु बगैर गुण की नहीं है। अच्छे या ख़राब, लेकिन बगैर गुण की कोई भी वस्तु नहीं है। हर एक गुण तो हैं ही, तो आत्मा निर्गुण कैसे हो सकता है?
अंत में तो प्राकृत गुणों को ही पोषण मिला
प्रश्नकर्ता : ये सत्व, रजस्, और तमस् ये तीन गुण हैं, उनमें और तत्व में क्या संबंध है?
दादाश्री : इन सत्व, रजस् और तमस् गुणों का क्या करना है? ये तो विनाशी गुण हैं, प्रकृति के गुण हैं । और तत्व अविनाशी वस्तु है।
ये जो सत्व, रज और तमो गुण हैं न, उन गुणों के अधिष्ठाता देव हैं। तो जिन्हें इन गुणों की ज़रूरत हो वे ब्रह्मा, विष्णु या महेश की आराधना करें। उसीके लिए हैं वे। और कुछ नहीं।
प्रश्नकर्ता : यानी उनकी गिनती देवताओं में होगी ?
दादाश्री : हाँ, लेकिन उनमें जो गुण हैं न, उन गुणों के वे अधिष्ठाता देव हैं। तमोगुणवाले शिव हैं और रजोगुणवाले विष्णु कहलाते हैं और सात्विक गुणवाले ब्रह्मा कहलाते हैं । उन देवों का पूजन करो तो अच्छा है, वे गुण बढ़ेंगे। लेकिन अंत में तो आत्मा को जानना ही पड़ेगा ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन शास्त्रों में वर्णन आता है न ब्रह्मा, विष्णु और महेश का, तो वह सब क्या है ?
दादाश्री : यह तो प्रकृति मज़बूत करने के लिए इन मूर्तियों को