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आप्तवाणी-८
प्रश्नकर्ता : आपने त्रिगुणात्मक की बात की, लेकिन कहा जाता है कि आत्मा तो निर्गुण है न?
दादाश्री : यह जो मान्यता है न कि, आत्मा निर्गुण है, वह भूल से भरी हुई मान्यता है। इस दुनिया में पत्थर भी गुण रहित नहीं होता। वह पत्थर भी काम में आता है न?
यानी आत्मा तो परमात्मा है। उसके अंदर अनंत गुण हैं। इस निर्गुण के बारे में आपको समझाता हूँ। शास्त्रकारों ने निर्गुण कहा है, लेकिन लोग खुद की भाषा में समझ गए। खुद की भाषा में समझेंगे तो फल मिलेगा
क्या
?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : ये क्या कहना चाहते हैं? कि प्रकृति के गुणों से आत्मा निर्गुण है। प्रकृति का एक भी गुण आत्मा में नहीं है। और खुद के जो स्वाभाविक गुण हैं, उनसे वह भरपूर है। आपको यह समझ में आया? प्रकृति का एक भी गुण आत्मा में नहीं है, इसलिए उसे निर्गुण कहा है।
नहीं है निर्गुण जगत् में कोई प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा कहा है कि निराकार, निर्गुण ब्रह्म की आप जिस प्रकार से भजना करोगे, उसी प्रकार से आपके सामने साक्षात् हाज़िर हो जाएगा। अतः साकार स्वरूप से वैसा ही दर्शन प्राप्त किया जा सकता
है।
दादाश्री : ऐसा है न, इन लोगों को जो ब्रह्म दिया था न, वह भ्रमवाला ब्रह्म था। ब्रह्म निर्गुण है ही नहीं। यह तो भ्रमवाला है, यह तो लोग नासमझी से खुद की भाषा में कुछ भी कहते रहते हैं।
प्रश्नकर्ता : लेकिन, 'ब्रह्म है क्या' वह बताइए न!
दादाश्री : वह मूल वस्तु है। वह अविनाशी है। उसके कितने ही, अनंत गुण हैं। अब इसे निर्गुण, निर्गुण करके सबके दिमाग़ में डाल दिया