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आप्तवाणी-८
फैल जाता है। सर्वव्यापक प्रकाश सभी ओर ब्रह्मांड में फैल जाता है। उस दृष्टि से सर्वव्यापक है । और ऐसे जो भगवान दिखते हैं वे तो दिव्यचक्षु से दिखते हैं, और वह भी सामने कोई क्रीचर हो तो दिखता है, वर्ना अगर क्रियेशन हो तो नहीं दिखता। यह तो 'गॉड इज़ इन एवरी क्रीचर वेदर विज़िबल ओर इन्विज़िबल, नॉट इन क्रियेशन ।' इस मशीन के अंदर भगवान नहीं है। जब कि अपने लोगों ने 'भगवान हर एक जगह पर हैं' ऐसा घुसा दिया।
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जगत् में सभी ओर आत्मा ही ?
पूरा ब्रह्मांड क्रीचर से, जीवों से ही ठसाठस भरा हुआ है और उन जीवों के अंदर चेतन बिराजमान है। हाँ, यानी कि जीवों में जड़ और चेतन, दो भाग हैं। और चेतन, वह शुद्ध चेतन है, वही आत्मा है, वही परमात्मा है।
नहीं?
प्रश्नकर्ता : यानी सभी ओर आत्मा के अलावा और कुछ है ही
दादाश्री : नहीं। सिर्फ आत्मा नहीं, हर एक जीव में अनात्मा भी है और आत्मा भी है । और सर्वव्यापी का अर्थ तो अलग है, लेकिन ये लोग तो बिना समझे ही सबकुछ उल्टा ले बैठे हैं। लेकिन यदि ऐसा सर्वव्यापी होता न तो संडास करने कहाँ जाएँ ? घर में संडास और रसोई दोनों अलग रखते हैं न? सभी में भगवान रहते हैं, तो हम कहाँ पर लकड़ी जलाने जाएँ और कहाँ पर लकड़ी नहीं जलाएँ? यानी ज़रा सद्विवेक को समझना तो पड़ेगा न? कृष्ण भगवान ने जड़ और चेतन, आत्मा और अनात्मा इस प्रकार से दो चीजें बताई हैं ।
यह जड़ और चेतन, ये दोनों दो अलग-अलग चीजें हैं। जो जड़ है, उसका आप उपयोग कर सकते हो, लेकिन चेतन को आप मारोगे तो आपको पाप लगेगा। पेड़ है, उसमें चेतन है। उसे काटोगे, जलाओगे तो पाप लगेगा। और यहाँ पर अगर कोई भी लकड़ी पड़ी हो उसे आप जला डालो तो हर्ज नहीं है। क्योंकि उसमें चेतन नहीं है ।