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आप्तवाणी-८
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तादृश, दृष्टांत में, 'मौलिक स्पष्टीकरण' कृष्ण भगवान ने बताया था न कि आत्मा और अनात्मा दो वस्तुएँ हैं। इस जड को ही यदि आत्मा मानें तो आत्मा की क्या दशा होगी? यदि सभी गेहूँ ही हैं तो बीनने को क्या रहा? गेहूँ और कंकड़ मिले हुए हों और कोई कहे कि ये सिर्फ गेहूँ ही हैं तो फिर बीनने को रहा ही क्या?
बज़ार में से आप गेहूँ लेने जाते हो, तब आप व्यापारी से क्या कहते हो? कंकड़ दो, ऐसा कहते हो या गेहूँ दो, ऐसा कहते हो? क्या कहते हो?
प्रश्नकर्ता : गेहूँ दो ऐसा ही कहना पड़ता है। दादाश्री : कहाँ के गेहूँ ऐसा नहीं कहना पड़ता? प्रश्नकर्ता : हाँ, ग्वालियर के गेहूँ।
दादाश्री : हाँ, फिर आप कहते हो कि मुझे ज़रा बताओ कि गेहूँ कैसे हैं। तो वह तुरन्त बोरी में सुई डालकर थोड़े गेहूँ निकालेगा, 'देखो पूरी बोरी ऐसे ही गेहूँ की है।' फिर व्यापारी उसे गेहूँ की बोरी कहता है। लोग भी उसे गेहूँ की बोरी ही कहते हैं। और घर पर ले जाए, तब पत्नी क्या कहती है? 'ये बीनने पड़ेंगे।' 'अरे, मैं तो ये गेहूँ ही लाया हूँ, इसमें बीनने का क्या है? मैं गेहूँ ही लाया हूँ न!' आप ऐसा कहोगे तब पत्नी कहेगी, 'आपमें अक़्ल नहीं है, गेहूँ और कंकड़ साथ में ही होते हैं। इसी को गेहूँ कहते हैं।' तब आप कहोगे, 'लेकिन बज़ार में इसे सब गेहूँ ही कहते थे न!' यानी व्यवहार में ऐसा ही कहा जाता है। व्यवहार में उसे गेहूँ ही कहा जाता है, लेकिन वे कंकड़ सहित होते हैं। इसलिए घर पर लाकर गेहूँ बीनने पड़ते हैं। व्यवहार ऐसा है। व्यवहार ऐसा कहता है कि यह गेहूँ की बोरी है। हम कहें कि, 'लेकिन भाई, अंदर कंकड़ हैं न!' तब कहेगा, 'नहीं, ऐसा नहीं कहते, यह बोरी गेहूँ की ही है।' व्यवहार इसे कहते हैं। हमें व्यवहार को समझना पड़ेगा न?
मैं आपके यहाँ आया और सुबह ब्रश करने का समय हो और मैं कहूँ कि, 'दातुन लाओ।' तो आप क्या-क्या चीज़ लाकर रख दोगे?