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आप्तवाणी-८
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प्रश्नकर्ता : वह शक्ति किसके पास है ?
दादाश्री : इसी शक्ति के बारे में मैं आपको बता रहा हूँ और उस शक्ति से ही यह सारा जगत् चल रहा है।
प्रश्नकर्ता : उस शक्ति को हम भगवान कहते हैं
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दादाश्री : हाँ, उसे पूरी दुनिया भगवान कहती है । लेकिन वह शक्ति तो जड़शक्ति है। वह जड़शक्ति है, इसलिए हम उसे भगवान नहीं कहते । जगत् के लोगों में तो समझ नहीं है न, इसलिए उसे ही भगवान मानते हैं, भगवान के अलावा और करेगा ही कौन ? लेकिन वह दूसरी शक्ति करती है। वह मैं आपको दिखा दूँगा।
प्रश्नकर्ता: दूसरा मैं ऐसा भी समझता था कि जो सब आवरणवाला है, उसे जीव कहते हैं। और आवरण जैसे-जैसे टूटते जाते हैं, तब जीवात्मा में से आत्मा बनता है
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दादाश्री : ऐसा है, कितने ही लोगों की मान्यता ऐसी होती है कि आवरणसहितवाले को जीव कहो और निरावरण को आत्मा कहो। लेकिन मैं क्या कहना चाहता हूँ कि आवरणसहित होने के बावजूद भी आत्मा प्राप्त होता है, तब फिर यह कोई नई ही चीज़ होगी न?
प्रश्नकर्ता : यह तो नया ही कहलाएगा। वर्ना हमें जो समझाया गया है कि समुद्र में पानी है, उसमें पवन से जब लहरें उठती हैं, तब जो लहर है वह आत्मा है और समुद्र परमात्मा है।
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दादाश्री ये तो सब विकल्प हैं, पागल जैसे विकल्प ! हाँ, आवरणवाले को जीव कहना चाहिए और जो निरावरण हो उसे आत्मा कहना चाहिए, इस विकल्प को हम चला सकते हैं। बाकी, अन्य ऐसे विकल्प तो काम के ही नहीं है । आत्मा जाना जा सके, ऐसी वस्तु नहीं है। वर्ल्ड में हज़ारो वर्षों में कभी ही आत्मज्ञानी, कोई एकाध मनुष्य ही होते हैं, अन्य कोई मनुष्य नहीं हो सकता, यह ऐसी बेजोड़ चीज़ है। बेजोड़ यानी जो अद्वितिय हो ।