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आप्तवाणी-८
सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' है । और 'दी वर्ल्ड इज़ द पज़ल इटसेल्फ ।' 'इटसेल्फ पज़ल' हो चुका है यह । यह पज़ल किस तरह से हो गया है, वह हम देखकर बता रहे हैं, ये तत्व जब मिलते हैं तब उनमें से दो तत्वों के कारण यह ‘जो’ उत्पन्न हुआ है, 'उसका' ज्ञान से नाश हो जाता है। अज्ञान के कारण उत्पन्न हुआ है, अज्ञान यानी विशेषभाव, यानी विशेषभाव के कारण उत्पन्न हुआ है। ज्ञान से वह खत्म हो जाता है।
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यह जगत् किसीने बनाया नहीं है । बनानेवाला कोई है ही नहीं । यहाँ पर ये सब घर, वगैरह कौन बनाता है? क्या पटेल बनाते हैं? पटेल तो पैसे दे सकते हैं। फिर सुथार, कारीगर, लुहार, ये सभी लोग घर बनाते हैं। उसी तरह भगवान क्या लुहार या कारीगर है? वे तो भगवान हैं। उनकी हाज़िरी से सबकुछ चलता रहता है । जैसे उस पटेल की हाज़िरी से पूरा मकान बनता रहता है, उसी तरह भगवान की उपस्थिति से यह पूरा जगत् चलता रहता है और कुछ भी करना नहीं पड़ता ।
इन परमाणुओं में इतने सारे गुण हैं न, यह जो पुद्गल है, यह यानी जड़ वस्तुओं में, अनात्म विभाग में इतना सारे गुण हैं, कि ये आँखें वगैरह अपने आप ही बन जाते हैं । किसीको कुछ करना नहीं पड़ता । इन गायों की, भैंसों की, बकरी की आँखें कितनी तेजवाली होती है? बंदर की आँखें कैसी होती है? यह सब अपने आप ही हो जाता है, प्रकृति अपने आप ही बन जाती है।
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वह विज्ञान क्या है, वह हमने, ज्ञानीपुरुष ने खुद देखा हुआ है। खुद उसे जानते हैं, लेकिन उसका वर्णन नहीं किया जा सकता । शब्दों से इसका वर्णन हो नहीं सकता। और शास्त्रों में भी पूरा स्पष्टीकरण नहीं हुआ है। बाकी मूल स्पष्टीकरण अलग ही है इसका।
अतः जगत् हमेशा इसी तरह रहेगा। इसे 'साइन्टिफिक' प्रकार से समझना हो तो मेरे पास आना । बाकी आपकी बुद्धि से यह जगत् नापा जा सके, ऐसा है ही नहीं, क्योंकि इस जगत् में से जीव मोक्ष में भी जाते हैं, और फिर भी जगत् ऐसे का ऐसा ही रहेगा । यह अजूबा यदि पूरी तरह