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आप्तवाणी-८
है। वाइफ के साथ बहस नहीं होती, पिता के साथ बहस नहीं होती, किसीके साथ टकराव नहीं होता, ऐसी जब अनुभूति होती है, उसके बाद अद्वैत की अनुभूति होती है। और द्वैत की अनुभूति जिसे हो गई, उसे ही अद्वैत की अनुभूति होती है।
अद्वैत का मतलब क्या है? यह उसे जानना चाहिए। यह सब आत्मा जानने के लिए है। आत्मा नहीं जाना तो भटक मरे और जिसे द्वंद्व है वे सभी भटक मरे। जिसे द्वंद्व है, वह अद्वैत नहीं कहलाता। द्वंद्व अर्थात् क्या? कि अच्छा-बुरा, फ़ायदा-नुकसान, जिसे ऐसा द्वंद्व रहता है, वह अद्वैत नहीं कहलाता।
द्वंद्वातीत होने से अद्वैत __ अद्वैत उसे कहते हैं कि जो द्वंद्वातीत हो चुका हो। अद्वैत कोई गप्प नहीं है। द्वैत के आधार पर अद्वैत टिका हुआ है। किसके आधार पर टिका
प्रश्नकर्ता : द्वैत के आधार पर।
दादाश्री : हाँ, यानी कि वह 'रिलेटिव' वस्तु है और 'रिलेटिव' वस्तु 'रियल' कभी हो ही नहीं सकती। द्वैत के आधार पर अद्वैत टिका है, यह 'रिलेटिव' वस्तु है। और 'रिलेटिव' वस्तु 'रियल' नहीं हो सकती। और आत्मा 'रियल' है। अतः ये जो अद्वैत बोलते हैं, वे सभी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन बात में कोई सार नहीं है। यदि अद्वैत है तो हमें उसे साबित करना चाहिए कि 'भाई, आप द्वंद्वातीत हो या नहीं, यह हमें बताओ।' यदि वह कहे कि, 'हम द्वंद्वातीत हैं।' तब हमें 'करेक्ट' मान लेना चाहिए। द्वंद्वातीत तो हो ही जाना चाहिए। यह द्वंद्व है, नफा-नुकसान, सुख-दुःख, सभी से परे हो जाना चाहिए, उसका असर ही नहीं होना चाहिए।
यानी अद्वैत किसे कहते हैं? द्वंद्वातीत हो चुका हो उसे। उसे फिर फ़ायदा या नुकसान कुछ भी स्पर्श नहीं करता। उसकी जेब कट जाए फिर भी वैसा ही और उसे फूल चढ़ाए तब भी वैसा ही। गालियाँ दे तब भी वैसा ही, धौल मारे तब भी वैसा ही, तब अद्वैत कहलाएगा।