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आप्तवाणी-८
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गए होते! यह जगत् सत्य है। यदि जगत् मिथ्या होता न तब तो रात को मनुष्य सो गया हो और मुँह ऐसे खुला हुआ हो, तो ऐसे दूर से इतनी मिर्ची मुँह में डाल दो तो शोर मचाएगा या नहीं मचाएगा? उसे नींद में से हमें उठाने जाना पड़ेगा? क्यों? अपने जगाए बिना ही उस पर असर हो जाता है? उसे कैसे पता चलता है? यानी मिथ्या होता न तो ऐसा कुछ होता ही नहीं न, देखो, जगत् भी सत्य है न? लेकिन जगत् रिलेटिव सत्य है, ब्रह्म रियल सत्य है।
___ प्रश्नकर्ता : ब्रह्म के प्रकाश से प्रकाशित है, इसलिए यह जगत् 'रिलेटिव' सत्य है?
दादाश्री : हाँ। उसके प्रकाश से प्रकाशित है, इसलिए यह 'रिलेटिव' सत्य है। और 'रिलेटिव' सत्य इसलिए सत्य तो है ही, लेकिन विनाशी सत्य है और ब्रह्म, वह अविनाशी सत्य है।
यदि जगत् मिथ्या होता न, तो लोग इसमें से आत्मा ले ही लेते। लेकिन क्योंकि यह जगत् भी सत्य है, इसलिए लोग जगत् को छोड़ते ही नहीं। बाहर कोई छोड़ने की बात करता है? ये तो कहेंगे, 'चलो, वहाँ बज़ार में चलो देखते हैं।' हम कहें, 'भाई, चलो, मोक्ष देता हूँ।' तब कहेगा, 'रहने दो न भाई, मुझे मेरा काम करने दो न चुपचाप।' अतः जगत् सत्य है। 'मेरी पत्नी. मेरे बच्चे' ऐसी बात करते हैं न? और स्त्री के पीछे पागल हो जाता है, मर जाता है और आत्महत्या भी कर लेता है! यदि मिथ्या होता तो कोई करता क्या ऐसा? मिथ्या तो, यह खटमल मारने की दवा भी मिथ्या नहीं है। उसे पी जाए न, तो पता चल जाएगा कि मिथ्या है या नहीं? उसे पी लिया हो तो 'हो-हो' करके रख देते हैं न? यानी कि ब्रह्म भी सत्य है और जगत् भी सत्य है? जगत् 'रिलेटिव' सत्य है और ब्रह्म 'रियल' सत्य है।
वास्तविकता समझनी तो पड़ेगी न! प्रश्नकर्ता : तो फिर 'जगत् मिथ्या है' ऐसा जो अर्थ बताया, वह गलत ही किया है न?