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आप्तवाणी-८
कहलाता है। भगवान को यदि इच्छा होती न, तो भगवान को भिखारी कहते।
__ प्रश्नकर्ता : जो कोई पूर्णब्रह्म है, सिर्फ उसकी इच्छाशक्ति से ही। उसने खुद ने कुछ भी नहीं किया?
दादाश्री : नहीं, इच्छाशक्ति भी नहीं है। इच्छाशक्ति होती तो भिखारी कहलाता। निरीच्छक है भगवान तो। सिर्फ विज्ञान से ही उद्भव हुआ है यह।
प्रश्नकर्ता : उस विशेषभाव को ही इच्छाशक्ति कहा है?
दादाश्री : नहीं, विशेषभाव और इच्छाशक्ति में बहुत फ़र्क है। विशेषभाव यानी दो चीज़ों के एक साथ रखने से, जैसे सूर्य और समुद्र दो आमने-सामने आ जाएँ, तब भाप बनती है। सूर्य की ऐसी इच्छा नहीं है, समुद्र की भी इच्छा नहीं है, यानी इसी तरह से व्यतिरेक गुण उत्पन्न होकर, उसमें क्रोध-मान-माया-लोभ व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो गए। इन्हें विशेषगुण कहा जाता है और उससे यह जगत् उत्पन्न हुआ है।
रूपी तत्वों के रूप दिखें जग में ये सब छह परमानेन्ट वस्तुएँ हैं। ये जो पाँच तत्व हैं-पृथ्वी, तेज, वायु, पानी, आकाश। इनमें से सिर्फ आकाश तत्व अकेला ही परमानेन्ट है, बाकी के चार तत्व तो विनाशी तत्व हैं। जो पृथ्वी, तेज, वायु, पानी ये विनाशी चीजें हैं, वे चेन्ज हो जाते हैं। आकाश विनाशी नहीं हैं।
प्रश्नकर्ता : इन सबकी उत्पत्ति आकाश में से ही हुई है?
दादाश्री : नहीं, नहीं। आकाश में से कोई उत्पत्ति हुई नहीं है इस वर्ल्ड में। इसमें जो परमाणु तत्व (जड़ तत्व) है, जिन्हें अणु कहते हैं उसमें से, उन परमाणुओं में से यह सब उत्पन्न हुआ है। सिर्फ परमाणु (जड़) ही रूपी तत्व हैं। उसी रूपी में से यह सब उत्पन्न हुआ है।
यानी कि परमाणु निरंतर पूरे जगत् में होते ही हैं, और यदि किसी