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आप्तवाणी-८
प्रश्नकर्ता : तो श्रुतवाणी के अभ्यास से आत्मज्ञान होता है?
दादाश्री : श्रुतवाणी वगैरह सब 'हेल्पिंग' करनेवाली चीज़ है । श्रुतवाणी से चित्त की मज़बूती होती है, दिनों दिन चित्त निर्मल होता जाता है। और जब चित्त निर्मल हो जाए और 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ, तो वह ज्ञान को जल्दी से, ज़्यादा अच्छी तरह से पकड़ सकेगा ।
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प्रश्नकर्ता : ज्ञान गुरु से मिलता है, लेकिन जिस गुरु ने खुद आत्मसाक्षात्कार कर लिया हो, उनके ही हाथों ज्ञान मिल सकता है न? दादाश्री : वे 'ज्ञानीपुरुष' होने चाहिए और फिर सिर्फ आत्मसाक्षात्कार करवाने से कुछ नहीं होगा । 'ज्ञानीपुरुष' तो 'यह जगत् किस तरह से चल रहा है? खुद कौन है? यह कौन है ? ' ऐसे सभी स्पष्टीकरण देते हैं तब काम पूरा हो, ऐसा है ।
वर्ना, पुस्तकों के पीछे पड़ते रहते हैं, लेकिन पुस्तकें तो 'हेल्पर’ हैं। वह मुख्य वस्तु नहीं है । वह साधारण कारण है, वह असाधारण कारण नहीं है। असाधारण कारण कौन - सा है ? 'ज्ञानीपुरुष' !
सीढ़ी एक और सोपान अनेक
प्रश्नकर्ता : जैनदर्शन, वेदांत, अद्वैतवाद, सोहम्, अहम् ब्रह्मास्मि, एकोहम् बहुस्याम, सर्व इदम् ब्रह्म, ये सब एक ही हैं?
दादाश्री : जैसे सीढ़ी और सोपान एक ही हैं, वैसे ही ये सब एक ही हैं। लेकिन सोपान के रूप में अलग-अलग माने जाते हैं।
न द्वैत, न अद्वैत, आत्मा द्वैताद्वैत
प्रश्नकर्ता : अद्वैत और द्वैत को समझना है, आप समझाइए।
दादाश्री : अद्वैत का मतलब आप क्या मानकर बैठे हो, वह मुझे
बताओ।
प्रश्नकर्ता : यह 'मैं ही एक सत्य हूँ, मेरे अलावा अन्य कोई सत्य