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आप्तवाणी-८
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.....तब 'ज्ञान-प्रकाश' में आएगा जगत् में जो ‘रियल' ज्ञान है, 'यूनिवर्सल' 'टूथ' है, उस तक बुद्धि नहीं पहुँच सकती। वह बुद्धि से भी ऊपर है। बुद्धि वहाँ पर आकर रुक जाती है। बुद्धि के उस अंतिम स्तर को लांघ जाए तो 'ज्ञान-प्रकाश' में आ जाएगा, यूनिवर्सल ट्रथ में आ जाएगा। यानी मन के सभी स्तर पूरे हो जाते हैं, उसके बाद बुद्धि के स्तर शुरू होते हैं और बुद्धि के स्तर पूरे हो जाएँ, उसके बाद फिर 'ज्ञान-प्रकाश' की स्थिति में आ जाता है। लेकिन वहाँ तक कोई पहुँच नहीं सकता। अरे, लोग बुद्धि के स्तर में नहीं पहुँच सके हैं, इसलिए फिर मन के स्तर में रहते हैं।
वर्ल्ड की वास्तविकता, प्रकाशमान करें 'ज्ञानी' ही ___'ज्ञानीपुरुष' तो पूरे वर्ल्ड की चीजें बता सकते हैं। जो वेद में नहीं हो, किसी शास्त्र में नहीं हो, वह सभी 'ज्ञानीपुरुष' बता सकते हैं, क्योंकि 'ज्ञानीपुरुष', वे अपना 'मीडियम' हैं, इस 'मीडियम' के द्वारा अपने से सभीकुछ जाना जा सकता है। बाकी, यह हक़ीक़त पुस्तक में उतर सके ऐसी नहीं है, यह अवक्तव्य और अवर्णनीय है, तब फिर वेदों का क्या दोष है इसमें? हाँ, मैं आपको संज्ञा से समझा सकता हूँ, लेकिन वेद तो कितनी संज्ञा कर सकेंगे? बाकी, वेद इसका जवाब नहीं दे सकते। जो वेद ने नहीं दिया, वह तो 'ज्ञानीपुरुष' का काम है।
लोग जिसे चेतन मानते हैं, वह सब भौतिक ही है, उसमें आध्यात्मिक है ही नहीं। आत्मा है, वह मूल वस्तु है और 'आप' जिसे आत्मा मानते हो न, वह भी सारा भौतिक ही है। उसमें किंचित् मात्र भी, एक बाल जितना भी 'आत्मा' नहीं है, 'आप' भूल से 'मानते' हो उतना ही क्योंकि जो 'मूल आत्मा' है, वह 'मिकेनिकल (भौतिक के प्रति झुकाववाला)' नहीं है। और आप 'मिकेनिकल' आत्मा को मूल आत्मा मानते हो लेकिन 'मिकेनिकल आत्मा' तो 'भौतिक आत्मा' है।
ये सभी लोग चेतनवाले हैं या बगैर चेतन के हैं? प्रश्नकर्ता : चेतनवाले।