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आप्तवाणी-८
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प्रश्नकर्ता : नहीं होगा।
दादाश्री : तो तब तक अभेद होगा नहीं। जब बुद्धि जाएगी तब अभेद हुआ जाएगा। बुद्धि भेद डालती है, 'यह मेरा और यह तुम्हारा' बुद्धि ही मनुष्य को 'इमोशनल' करती है।
प्रश्नकर्ता : बुद्धि 'इमोशनल' करती है या हृदय 'इमोशनल' करता
है।
है
दादाश्री : नहीं, बुद्धि ही। हृदय तो अबुध में भी होता है।
प्रश्नकर्ता : बुद्धि को शास्त्रों ने निश्चयात्मिका कहा है न, निश्चय करनेवाली?
दादाश्री : हाँ। बुद्धि निर्णय करनेवाली है, फिर भी वह 'इमोशनल' कर देती है।
स-इति तो भेदविज्ञान से ही आत्मा वेद में समा सके, ऐसी वस्तु ही नहीं है। वेद में जो शब्द हैं, वे स्थूल भाषा के हैं और आत्मा सूक्ष्मतम है। दोनों का मेल किस तरह से पड़ेगा? एक स्थूल और एक सूक्ष्मतम, वेद किस तरह से वर्णन कर सकेंगे? आत्मा अवक्तव्य है और अवर्णनीय है, नि:शब्द है, इसलिए वेद में कभी भी नहीं उतर सकता। जब कि कहते हैं, 'वेद ही इस जगत् की सभी वस्तुओं को जानते हैं न? तो फिर इस वेद से पार कौन जान सकेगा?' तब कहे, 'वेद से नीचे का तो कोई जान नहीं सकता। वेद खुद भी नहीं जानते। लेकिन वेद से ऊपर के जो होते हैं, सिर्फ वे ज्ञानीपुरुष ही जानते हैं कि आत्मा क्या है, वह !' 'ज्ञानीपुरुष' ऐसा भी कहते हैं कि, 'दिस इज़ देट, दिस इज़ देट।'
प्रश्नकर्ता : 'दिस इज नॉट देट' में से 'दिस इज़ देट' में किस तरह से जाया जा सकता है?
दादाश्री : 'दिस इज नॉट देट' में से 'दिस इज़ देट' में जाने के