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आप्तवाणी-८
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'ज्ञानीपुरुष' होने चाहिए, जिन्हें वर्ल्ड में कोई भी चीज़ जाननी बाकी नहीं रही हो। इस वर्ल्ड में ऐसी कोई चीज़ नहीं है कि जो उन्हें जाननी बाकी हो। प्रश्नकर्ता : निर्विकल्पी पुरुष कैसे होते हैं?
दादाश्री : निर्विकल्पी पुरुष में बुद्धि का छींटा तक नहीं होता । बुद्धि का एक छींटा भी नहीं होता, इसीलिए उनका नाम निर्विकल्प पुरुष ।
प्रश्नकर्ता : तो गीता में क्षर पुरुष और अक्षर पुरुष, दो का वर्णन है, वे अक्षर पुरुष अर्थात् निर्विकल्प पुरुष?
दादाश्री : क्षर तो यह देह ही है और अक्षर विकल्पी है । और जो क्षर-अक्षर से परे है, वह निर्विकल्प |
विकल्पों के कारण चूक जाते हैं अंतिम मौका
बाकी मैं तो आत्मा को जानता हूँ । आप कहो कि मुझे आत्मा दे दीजिए, तो मैं आत्मा दे देता हूँ ।
प्रश्नकर्ता लेकिन मुझे तो व्यवहार में रहना है।
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दादाश्री : तो व्यवहार में रहकर, लेकिन व्यवहार तो आदर्श व्यवहार होना चाहिए। आत्मा प्राप्त हुआ कब कहा जाएगा? खुद के घर का व्यवहार पूर्ण आदर्श हो, तभी आत्मा प्राप्त होगा । वर्ना आत्मा प्राप्ति की ये जो बातें करते हैं न, ऐसी गुफा जैसी वस्तु नहीं है यह । आत्मा, वह गुफा की वस्तु नहीं है। गुफा तो 'ऑन ट्रायल' वस्तु है । वर्ना तो जहाँ पर खुद का व्यवहार सुंदर हो, आदर्श हो, वहाँ पर क्रोध - मान-माया - लोभ नहीं होते, पड़ोसी के साथ संबंध अच्छे होते हैं, घर में 'वाइफ' के साथ संबंध अच्छे होते हैं।
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प्रश्नकर्ता : लेकिन आत्मा को ढूँढना नहीं होता, उसका तो स्वयं दर्शन हो जाता है न?
दादाश्री : ऐसा है न, कि इन लोगों ने जहाँ पर रास्ता टूट गया वहाँ पर सारे ‘ऑर्नामेन्टल' रास्ते बनाए । मूल रास्ता, जब बारह - बारह अकाल पड़े थे, तब यह रास्ता पूरा ही टूट गया था, तब 'ऑर्नामेन्टल' रास्ते बनाए।