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आप्तवाणी-८
दादाश्री : कैसे पता चलता है कि चेतनवाले हैं? कौन-से लक्षणों पर से?
प्रश्नकर्ता : ये सभी चलने-फिरने के 'मूवमेन्ट्स' होते हैं न! शरीर में जाकर शरीर का सिर्फ मूवमेन्ट करवाता है।
दादाश्री : मूवमेन्ट करवाता है? शरीर का? आत्मा ऐसा कुछ भी नहीं करता है। जो शरीर का मूवमेन्ट करवाता है, वह 'मिकेनिकल आत्मा' है। अभी 'आप' जिसे आत्मा जान रहे हो, वह तो ‘मिकेनिकल आत्मा' है। सच्चे आत्मा को 'ज्ञानी' के अलावा और कोई नहीं जान सकता। इस 'मिकेनिकल' के उस पार सच्चा आत्मा है और वह इस शरीर में ही रहा हुआ है। बाकी, सच्चा आत्मा तो चलने-फिरने की स्थिति में है ही नहीं, वह क्रिया कर ही नहीं सकता।
यह तो जब छिपकली की पूंछ कट जाती है, तब फिर वह भी हिलती-डुलती रहती है। उस पूंछ में जान होती है? तो क्यों वह उछलकूद करती है? किस आधार पर उछल-कूद करती है?
प्रश्नकर्ता : वे प्रकृति के स्वतंत्र गुणधर्म हैं, उस तरह से?
दादाश्री : यानी जो चलता है-फिरता है वह चेतन नहीं है। तब फिर चेतन का लक्षण क्या है? तब कहे, 'वहाँ पर ज्ञान-दर्शन होना चाहिए, तो वहाँ पर चेतन है ऐसा तय हो जाता है।' अभी जगत् में ये जो सब ज्ञानदर्शन दिखता है वह चेतन नहीं है, वह ज्ञान-दर्शन तो बुद्धि के लक्षण हैं। यानी कि वास्तव में वह भी चेतन नहीं है, लेकिन वहाँ पर चेतन हाज़िर है, इतनी बात पक्की है।
इस 'टेपरिकार्ड' के अंदर ज्ञान भी नहीं है और लागणी भी नहीं है, इसलिए इसमें चेतन नहीं है। यह बोलता ज़रूर है, लेकिन इसमें चेतन नहीं है। यह आपके साथ अभी कौन बात कर रहा है? कोई न कोई बात कर रहा है, इतना तो पक्का ही है न? 'यह कौन बात कर रहा है', उसे पहचानना तो पड़ेगा न? कौन बोल रहा है आपके साथ?