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आप्तवाणी-८
है, अवक्तव्य है, वह शब्दों में नहीं होता। और वेद शब्दरूपी हैं। इसलिए 'गो टु ज्ञानी' कि जहाँ पर आत्मा हाथ में आ सकता है। 'दिस इज़ देट' कहेंगे वे।
वेद, वह बुद्धिजन्य ज्ञान है, और यह ज्ञान चेतनज्ञान है। बुद्धिजन्य ज्ञान यानी कि, बुद्धि और ज्ञान में डिफरेन्स क्या है? कि 'डायरेक्ट नॉलेज' को ज्ञान कहते हैं। 'इन्डायरेक्ट नॉलेज', उसे बुद्धि कहते हैं। वेद शब्दरूपी ज्ञान है, इसलिए बुद्धिगम्य ज्ञान है। वेद 'थ्योरिटिकल' हैं और ज्ञान 'प्रेक्टिकल' है।
प्रश्नकर्ता : यानी कि अनुभवगम्य?
दादाश्री : हाँ। अनुभवगम्य ही सच्चा ज्ञान है। बाकी, दूसरा सारा तो 'थ्योरिटिकल' है। वह 'थ्योरिटिकल' शब्द के रूप में होता है, और चेतनज्ञान तो शब्द से आगे, बहुत आगे है। वह अवक्तव्य होता है, अवर्णनीय होता है। आत्मा का वर्णन हो ही नहीं सकता, वेद कर ही नहीं सकते।
फिर भी वेदों का मार्गदर्शन तो एक साधन है। वह साध्यवस्तु नहीं है। जब तक 'ज्ञानीपुरुष' नहीं मिलेंगे, तब तक कभी भी काम नहीं हो पाएगा।
प्रश्नकर्ता : ज्ञान और वेद, इन दोनों का जो भेद है न, वह शाब्दिक भेद है? इसमें कोई बौद्धिक कसरत है?
दादाश्री : बौद्धिक ही है।
वेद बौद्धिक ही हैं, त्रिगुणात्मक हैं और सच्चा ज्ञान, वह त्रिगुणात्मक नहीं होता, वही विज्ञान है। विज्ञान तो दरअसल ज्ञान है और यह 'ज्ञान', वह उस तक पहुँचने का साधन है।
प्रश्नकर्ता : ठीक है, लेकिन विज्ञान और ज्ञान दोनों शब्दों का उपयोग वेद में एक ही जगह पर किया गया है।
दादाश्री : उसमें विज्ञान का उपयोग हो ही नहीं सकता। वेद तो