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आप्तवाणी-८
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ने कहा है लेकिन अभी की जो साइन्स दृष्टि है, उसे सभी 'यूनिवर्सली' क्यों एक्सेप्ट नहीं करते?
दादाश्री : नहीं करे या करेंगे। क्योंकि उन्हें समझ में नहीं आता है न! आत्मा का अस्तित्व तो अपने हिन्दुस्तान में हर एक दर्शन स्वीकार करता है। 'फॉरिनवालों' में आत्मा के अस्तित्व का दर्शन नहीं होता, क्योंकि वे लोग अभी तक पुनर्जन्म को ही नहीं समझते। जो लोग पुनर्जन्म को समझते हैं, उन्हीं को आत्मा के अस्तित्व का दर्शन ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन यदि यह बात यूनिवर्सली सत्य हो, तो फिर उस तरह से यूनिवर्सली क्यों सभीको पहुँच नहीं सकती?
दादाश्री : ऐसा है न, ये जो सारे सत्य हैं, यदि वे यूनिवर्सली होते, फिर भी वे सब सापेक्ष सत्य हैं। यदि मैं आपके साथ बात करूँ न, लेकिन वह बात ये भाई नहीं समझ सकेंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूँ और आप तुरन्त ही समझ जाओगे। यानी हर एक का 'व्यूपोइन्ट' अलग-अलग होता है और हिन्दुस्तान के अलावा, बाहर का कोई भी मनुष्य आत्मा के संबंध में कुछ भी समझ नहीं सकता। मेरे पास फॉरिन के 'साइन्टिस्ट' आएँगे तो तब मैं यह सब उन्हें ब्यौरेवार समझा दूंगा। और सिर्फ 'साइन्टिस्ट' यह समझ सकते हैं, और वह भी कुछ हद तक का। आप इसे जितना समझ सकते हो, उतना तो वे भी नहीं समझ सकेंगे। क्योंकि अभी वे लोग 'डेवलप्ड' ही नहीं है न! सभी 'फॉरिनवाले' 'अध्यात्म' में 'अन्डर डेवलप्ड' हैं।
प्रश्नकर्ता : हिन्दुस्तान में ऐसा पुरुषार्थ क्यों कोई नहीं कर सकता कि जिससे सभी को यूनिवर्सली यह बात पहुँचे?
दादाश्री : यह बात पहुँच सकती है, परन्तु अभी वीतरागों की जो लाइट है न, उनकी बात पर आवरण आ गया है। अभी सिर्फ मैं अकेला ही 'ज्ञानीपुरुष' हूँ। पूरे वर्ल्ड के प्रश्नों के खुलासे देने के लिए तैयार हूँ, चार अरब लोगों को संपूर्ण खुलासा देने के लिए तैयार हूँ, लेकिन ये लोग मुझसे मिलने चाहिए। वर्ना नहीं तो मैं क्या कर सकता हूँ? कहाँ-कहाँ