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आप्तवाणी-८
हुए हैं। इसके तीन भाग किए हैं। एक यह अव्यवहार - राशि, दूसरी व्यवहारराशि और तीसरा सिद्धक्षेत्र !
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अव्यवहार राशि के जीव अनंत हैं और जो व्यवहार में आए हैं, वे जीव भी अनंत हैं, लेकिन व्यवहार में इन मनुष्यों को गिनना हो तो गिने जा सकते हैं, ऐसा है। और जो व्यवहार में से मुक्त हो गए हैं, सिद्धगतिवाले हैं, वे भी अनंत जीव हैं !
अव्यवहार राशि के जीव यहाँ पर व्यवहार में आते हैं। ऐसा मानो न, पचास हज़ार जीव मोक्ष में गए तो दूसरे पचास हज़ार अव्यवहार राशि में से आकर व्यवहार राशि में प्रवेश करते हैं, जिससे यह व्यवहार वैसे का वैसा ही रहता है ।
व्यवहार किसे कहते हैं? कि जो जीव समसरण मार्ग में से होते हुए आए हैं और जिनके नाम पड़ चुके हैं, यानी जिनका नामरूप उत्पन्न हो जाए, तभी से ऐसा कहा जाएगा कि ये व्यवहार में आ गए कि 'भाई, यह तो प्याज़ है, यह तो गुलाब है, यह चावल का दाना, यह काई है ।' ठेठ मोक्ष में जाने तक अवस्थाएँ निरंतर बदलती ही रहती हैं और डेवलपमेन्ट चलता ही रहता है । एकेन्द्रिय में से धीरे-धीरे, फिर आगे उसका डेवलपमेन्ट होते-होते ठेठ पंचेन्द्रिय तक का डेवलपमेन्ट होता है। पंचेन्द्रिय में आने के बाद फिर फॉरिन का मनुष्य बनता है । और वापस मनुष्य में डेवलप होते-होते-होते-होते हिन्दुस्तान में आता है। हिन्दुस्तान में जन्मे सभी जीव अध्यात्म में बहुत ही उच्च कक्षा के डेवलपमेन्टवाले हैं, और वे ही सभी मोक्ष के अधिकारी हैं। फॉरिनवाले अभी तक 'डेवलप' हो रहे हैं ! जो फुल डेवलप हो जाता है, तब वह यहाँ से मोक्ष में जाता है!
व्यवहार में से जितने जीव वहाँ मोक्ष में जाते हैं, सिद्धक्षेत्र में जाते हैं, उतने जीव अव्यवहार में से व्यवहार में आते हैं, यानी कि व्यवहार किसे कहते हैं कि व्यवहार में जितने जीव हैं, उनमें से एक भी जीव कभी भी कम नहीं होता और न ही बढ़ता है, उसीका नाम व्यवहार! व्यवहार में एक भी जीव कम-ज़्यादा हो जाए न, तो पूरी व्यवस्था ही टूट जाए !