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आप्तवाणी-८
होगा, फिर असंख्यात भाग कम होगा, फिर संख्यात भाग कम होगा, फिर संख्यात गुण कम हो जाएँगे । फिर असंख्यात गुण कम हो जाएँगे और फिर अनंत गुण कम हो जाएँगे, और फिर वापस वर्धमान होंगे। यानी कम होने के बाद में फिर से वर्धमान होंगे और वर्धमान होने के बाद हयमान होंगे । प्रश्नकर्ता संख्यात और असंख्यात का मतलब क्या है?
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दादाश्री : संख्यात अर्थात् जो गिना जा सके, ऐसा हो। मनुष्य की आबादी संख्यात है और तिर्यंच की आबादी असंख्यात है । असंख्यात अर्थात् जो गिने नहीं जा सकें, संख्याएँ भी पूरी नहीं पड़ें। ये अरब से आगे की संख्याएँ हैं न, वे सब भी बोल दें, फिर भी वह पूरा नहीं होगा, उसे असंख्यात कहा है, संख्या पूरी हो जाए तब भी वह पूरा नहीं होगा । सिर्फ ये मनुष्य ही संख्यात हैं, चार अरब या पाँच अरब गिनकर कह सकते हैं। बाकी तिर्यंच असंख्यात हैं, देवी-देवता भी असंख्यात हैं । नर्कगति के जीव असंख्यात हैं और मनुष्य के अलावा व्यवहार के बाकी सभी जीव असंख्यात हैं। अव्यवहार राशि के जीव अनंत हैं और वहाँ पर सिद्धगति में भी अनंत सिद्ध हैं। अनंत अर्थात् असंख्यात से भी आगे, पार ही नहीं आता, अंत ही नहीं आता, इसलिए उसे गिनने का प्रयत्न ही मत करना। संख्यात को गिनने का प्रयत्न कर सकते हैं, और असंख्यात की संख्या ही नहीं है तो क्या हो सकता है? करोड़, दस करोड़ अरब, ऐसे आगे कितना ही बोलते रहें, फिर भी हिसाब पूरा नहीं होगा, इसलिए उसे असंख्यात में रख दिया है, कि यह संख्या में नहीं समा सकता !
यह वर्ल्ड इटसेल्फ पज़ल हो गया है। इसका कारण क्या है कि ये जीव निरंतर प्रवाह में ही बहते रहते हैं, अनादि प्रवाह के रूप में ये जीव बहते ही रहते हैं । जैसे नर्मदाजी नदी ऐसे बह रही होती हैं न, उसी तरह ये जीव निरंतर बहते ही रहते हैं । निरंतर द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव बदलते ही रहते हैं! क्षेत्र भी बदलता रहता है !! यानी कि पिछले जन्म में यदि दसवें मील पर होंगे तो अभी इस जन्म में ग्यारहवें मील पर आते हैं। अब, दसवें मील पर अच्छे-अच्छे बाग़, अच्छे लोग, ये सब देखा होता है और फिर ग्यारहवें मील पर रेगिस्तान आता है, तब मन में ऐसा होता है कि