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आप्तवाणी-८
इसलिए हम कहते हैं न कि कर्मों से मुक्ति प्राप्त कर लो। शुद्धात्मा प्राप्त हो जाएगा तो फिर पुद्गल का खिंचना कम हो जाएगा। वर्ना तब तक काल, कर्म, माया सबकुछ बाधक रहेगा। अतः जब पुदगल के इस पूरे ही सिलसिले का निकाल (निपटारा) कर लेगा, तब फिर 'वह' 'खुद के स्वभाव' में रहकर मोक्ष में चला जाएगा।
__ अब, पुद्गल का स्वभाव अधोगामी है। लेकिन पुद्गल का स्वभाव किस प्रकार से अधिक अधोगामी होता है? तब कहे, 'शरीर मोटा हो उसके आधार पर नहीं या शरीर वज़नदार हो, उसके आधार पर नहीं, अहंकार कितना बड़ा है और कितना लंबा-चौड़ा है, उस पर आधारित है। यों तो शरीर इतना पतला-दुबला होता है, लेकिन अहंकार पूरी दुनिया जितना होता है और कोई शरीर से एकदम मज़बूत हो, ढाई सौ किलो का लेकिन अगर उसका अहंकार नहीं होगा तो वह डूबेगा नहीं!' अहंकार अर्थात् वज़न ! अहंकार का अर्थ ही वज़न !!!
यानी कि यह जगत् अपार है, लेकिन नियमबद्ध है। क्योंकि आत्मा का स्वभाव ही ऊर्ध्वगमनवाला है, सिद्धगति की ओर गमनवाला स्वभाव
है।
मनुष्य जन्म के बाद वक्रगति प्रश्नकर्ता : भौतिक विज्ञान का उत्क्रांतिवाद, थ्योरि ऑफ इवोल्युशन और जगत् के अनादिपन का किस तरह से मेल बैठता है? इसे समझाने की कृपा करें।
दादाश्री : जगत् अनादि अनंत है। इसमें ये जीव उत्क्रांति प्राप्त करते ही रहते हैं। जीवों के तीन विभाग किए गए हैं। इन तीन विभागों में से, एक विभाग में बिल्कुल भी उत्क्रांति होती ही नहीं है। वे जीव तो स्टॉक में पड़ा हुआ माल है। उसे अव्यवहार राशि कहा जाता है। और स्टॉक में से अंदर आते हैं, व्यवहार में आते हैं और व्यवहार जीवों की उत्क्रांति होती ही रहती है। उत्क्रांति होने पर अंत में जीव मोक्ष में जाते हैं। उत्क्रांति होतेहोते, सभी अनुभव लेते-लेते, वे आगे जाकर फिर मोक्ष में जाते हैं।