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आप्तवाणी-८
काय में पेड़-पौधों की योनि में जा सकते हैं। बहुत हुआ तो मनुष्य में से आठ जन्मों तक तिर्यंच में जाता है ।
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यानी पूरी देवगति, पूरी नर्कगति और तिर्यंचगति का कुछ ही भाग, वे सब मनुष्य में से गए हुए हैं। मनुष्य चार्ज और डिस्चार्ज दोनों करता है और चार्ज - डिस्चार्ज से परे भी रह सकता है। यानी इतनी मनुष्य में शक्ति है कि मोक्ष में जा सकता है।
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जिसकी सज्जनता नहीं टूटती, उसका मनुष्यपन नहीं जाता। यदि उसे खुद को पाशवता के विचार आते रहते हों, तो उसे तिर्यंच में ले जाते हैं। भोगने की हद होती है । तेरी मालिकी का हो, वही भोगना और मालिकी का नहीं हो, उसका विचार भी मत करना । यह तो अणहक्क का भोगता है, वही तिर्यंचगति में ले जाता है यानी कि अपने विचार ही इन गतियों में ले जाते हैं I
कुछ स्थावर, फल देनेवाले पेड़ हैं, जिस मनुष्य ने प्रपंच और ऐसा सब किया होता है वह फिर नारियल, आम, रायण ऐसे पेड़ों में जाता है और लोगों को पूरी ज़िन्दगी खुद के फल देता है, तब जाकर लोगों के ऋण में से मुक्त होता है, इतने मधुर आम होते हैं, फिर भी खुद आम नहीं खाता है न? इस तरह लोगों को आम देकर कर्ममुक्त होता है । यानी यह सब ‘साइन्टिफिक' है। इसमें किसीका चले, ऐसा नहीं है।
.... तब मोक्ष में जाएगा
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प्रश्नकर्ता : ‘थ्योरि ऑफ इवोल्युशन' की बात में, उत्क्रांतिवाद में जीव एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय ऐसे 'डेवलप' होते-होते मनुष्ययोनि में आता है । और मनुष्ययोनि में से वापस फिर पशुयोनि में जाता है। तो इस 'इवोल्युशन' की 'थ्योरि' में ज़रा विरोधाभास लगता है । इसे ज़रा स्पष्ट कीजिए ।
दादाश्री : नहीं। इसमें विरोधाभास जैसा नहीं है। 'इवोल्युशन' की 'थ्योरि' पूरी ठीक है। सिर्फ मनुष्य में पहुँचने तक ही 'इवोल्युशन' की थ्योरि 'करेक्ट' है, फिर उससे आगे वे लोग जानते ही नहीं।