________________
आप्तवाणी-८
से समझना हो तो यहाँ मेरे पास आना। इस जगत् को समेटनेवाला कोई है ही नहीं।
यह दुनिया भगवान ने नहीं बनाई है। ये फॉरिन के साइन्टिस्ट मुझसे पूछ रहे थे कि, 'गॉड इज़ क्रियेटर। हमारे क्राइस्ट ने कहा है, तो आप क्यों नकार रहे हैं?' तब मैं कहता हूँ, 'गॉड इज़ क्रियेटर इज़ करेक्ट बाइ क्रिश्चियन व्यू पोइन्ट, बाइ इन्डियन व्यू पोइन्ट, बाइ मुस्लिम व्यू पोइन्ट, नॉट बाइ फेक्ट।'
परमात्मा ने दुनिया बनाई ही नहीं है। यह दुनिया इटसेल्फ बनी है और इटसेल्फ पज़ल हो गया है यह और यह विज्ञान से पज़ल हुआ है। ये छह तत्व हैं, इनमें से दो तत्वों के साथ में रहने से, उनमें से विशेषभाव उत्पन्न होता है। दो तत्वों के साथ में रहने के कारण खुद, खुद के गुणधर्मों को छोड़ता नहीं है और विशेष गुणधर्म उत्पन्न हो जाते हैं। इसे लोगों ने व्यतिरेक गुण कहा है। तो ये क्रोध-मान-माया-लोभ, ये आत्मा के गुण नहीं हैं, उसी तरह ये अनात्मा के भी गुण नहीं है। ये व्यतिरेक गुण हैं। यानी कि ये विशेष गुण उत्पन्न हुए हैं, और उससे यह जगत् उत्पन्न हो गया है, बस, और कोई भी बनानेवाला नहीं है इस दुनिया का!
__ये लोग तो ऐसा भी कहते हैं कि भगवान की इच्छा हुई, इस दुनिया की रचना करने की! लेकिन जिसे इच्छा होती है न, उसे भिखारी कहते हैं। भगवान किसी भी प्रकार की इच्छावाले नहीं हैं। जहाँ पर परितृप्ति है, परमानंद है, वहाँ पर इच्छा कहाँ से होगी? यानी भगवान को इच्छा उत्पन्न ही नहीं होती, लेकिन यह तो लोगों ने घुसा दिया है कि भगवान को इच्छा हुई और यह दुनिया रची, ऐसा-वैसा कुछ है नहीं। यह तो पूरा विज्ञान है। और विज्ञान से उत्पन्न हुआ है। यह पूरा जगत् विज्ञान ही है।
यह रचना, खुद ही विज्ञान प्रश्नकर्ता : इस जगत् की उत्पत्ति क्रियाशक्ति से नहीं, इच्छाशक्ति से है?
दादाश्री : नहीं, इच्छाशक्ति भी नहीं है। इच्छावाला तो भिखारी