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आप्तवाणी-८
सबकुछ अनिवार्य। यह संसारमार्ग है और आत्मा संसारमार्ग में से गुज़र रहा है, उसका असर है । और कुछ है नहीं, इफेक्ट ही है सिर्फ ।
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अतः आत्मा बढ़ता भी नहीं है और घटता भी नहीं है। पुद्गल भी न तो बढ़ता है, न ही घटता है । ये जड़ परमाणु हैं न, वे भी घटते नहीं हैं और बढ़ते भी नहीं हैं । यहाँ पर भले ही कितने ही लोगों को जला डालें, काट डालें, फिर भी एक भी परमाणु बढ़ता - घटता नहीं है, सबकुछ वैसे का वैसा ही रहता है।
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प्रश्नकर्ता तो फिर नये किस तरह उत्पन्न होते हैं? मनुष्यों की आबादी बढ़ी है न?
दादाश्री : इन जानवरों में से जो कम हुए हैं, वे सभी यहाँ मनुष्य में आ गए हैं। लेकिन वे वापस रिर्टन टिकट लेकर आए हुए हैं । जहाँ से निकले वहाँ की रिर्टन टिकट लेकर आए हैं । लेकिन यहाँ आकर काम क्या करोगे? तब कहते हैं, 'हम तो लोगों का सबकुछ भोग लेंगे, अणहक्क का भोग लेंगे और मकान बना देंगे, रोड बना देंगे, पुल बना देंगे, और मेहनत करके मर जाएँगे।' यानी कि जहाँ पर थे वहीं के वहीं वापस जानेवाले हैं। ये जो मिलावट करते हैं न, वे वहाँ पर जाने के लिए मार्क्स इकट्ठे कर रहे हैं, उतने मार्क्स मिल जाएँगे तो वापस वहाँ पर चले जाएँगे।
सृष्टि के सर्जन - समापन की समस्या
प्रश्नकर्ता : भगवान इस जीवरूपी जगत् को कब समेट लेंगे? और उस समय की स्थिति कैसी होगी ?
दादाश्री : भगवान में इस जगत् को समेटने की शक्ति ही नहीं है । बल्कि भगवान ही इस जगत् में फँसे हुए हैं, वे मुक्त होने के लिए प्रयत्न करते रहते हैं। ‘ज्ञानीपुरुष' फिर रास्ता दिखाते हैं, तब बाहर निकल जाते हैं। जगत् को समेटने की शक्ति किसी में है ही नहीं इस जगत् में।
यानी यह जगत् भगवान ने नहीं बनाया है । इस जगत् में भगवान (आत्मा) ही ऐसी एक वस्तु नहीं है, ये तो 'ओन्ली साइन्टिफिक