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आप्तवाणी-८
केन्टीन दिखेगी, सबकुछ दिखेगा । इसलिए अभी से ही इतनी पूछताछ मत करना। अभी यहाँ पर भरूच आया हो और आप कहो कि, 'दादा, मुंबई में मरीनड्राइव कैसा लगता है?' तब मैं कहूँगा कि, 'भाई, मुंबई आने दो न, वहीं जाकर देख लेना न !' यह तो ऐसा होता है कि सूरत स्टेशन पर वह घारी (एक मिठाई) मिली हो, तो उसमें ध्यान नहीं रहता और मरीनड्राइव याद आता रहता है । इसीलिए हम कहते हैं न, कि अभी आराम से खाते-पीते जाओ, मुंबई जाओगे तो मरीन ड्राइव आपको दिखेगा, अगर अभी नहीं दिखे तो उसका बोझा रखने जैसा नहीं है।
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प्रश्नकर्ता : आत्माओं की संख्या में कमी - बढ़ौतरी नहीं होती इसका ऐसा अर्थ हुआ?
दादाश्री : कम - ज़्यादा होता ही नहीं, जो है वही है ! उसमें कम भी नहीं होता और बढ़ता भी नहीं है । इस जगत् में सिर्फ आत्मा ही नहीं, लेकिन अनात्मा का भी एक भी परमाणु कम - ज़्यादा नहीं होता । इतनी सारी लड़ाइयाँ होती हैं, झगड़े होते हैं, इतने सारे लोग मर जाते हैं, फिर भी एक भी परमाणु कम नहीं होता और एक भी परमाणु बढ़ता नहीं है, आत्मा की संख्या में कमी- बढ़ौतरी नहीं होती । जैसा है वैसा जगत् है, इसमें परिवर्तन हो सके, ऐसा नहीं है ।
प्रश्नकर्ता : तो फिर यह सारा कारोबार जो शक्ति चलाती है, उस शक्ति को किस स्वरूप में पहचानें?
दादाश्री : यह सब जो चलाती है, वह शक्ति तो, ऐसा है न, कि अपने को यदि पाँच लोग परेशान कर रहे हों तो हम किसका नाम देंगे कि यह मुझे परेशान कर रहा है?
प्रश्नकर्ता पाँचों का?
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दादाश्री : हाँ, उसी तरह यहाँ पर भी किसी एक का नाम दे सकें, ऐसा नहीं है। इस प्रकार ये सब मिलकर करते हैं। यह तो सारा ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेनिश्यल एविडेन्स' है। यानी सभी मिलकर करते हैं, इसमें किसका नाम दें? एक का भी नाम दे सकते हैं? और है यह