________________
आप्तवाणी-८
इस
दादाश्री : एक भी आत्मा बढ़ता या घटता नहीं है । जितने यहाँ से मुक्ति में जाते हैं, उतने आत्मा दूसरी जगह से यहाँ पर आ जाते हैं, संसार व्यवहार में आ जाते हैं । व्यवहार यानी जिन जीवों के नामरूप पड़ चुके हैं, वे व्यवहार में आ चुके हैं। यानी यह गुलाब का पौधा है वह, व्यवहार में आया कहा जाएगा। और जिसका अभी तक नामरूप कुछ पड़ा नहीं है, वे व्यवहार में आए ही नहीं हैं। ऐसे अनंत जीव हैं कि जो व्यवहार में नहीं आए हैं, इसलिए उनको तो हिसाब में ही मत लेना । यहाँ से जितने मोक्ष में जाते हैं, उतने वहाँ से यहाँ पर आ ही जाते हैं। यानी इस व्यवहार में जितने जीव हैं, वे उतने के उतने ही रहते हैं । उनमें कुछ भी कमज़्यादा नहीं होता है। इसीको संसार कहते हैं, एक भी बढ़ता नहीं और एक भी घटता नहीं। आपको समझ में आया न?
५८
जिनका अभी तक नाम भी नहीं पड़ा है, ऐसे अनंत जीव हैं, उनमें से यहाँ पर आते हैं। यहाँ से जितने जीव मोक्ष में गए कि तुरन्त ही वे वहाँ (अव्यवहार राशि) से यहाँ पर एडमिट हो जाते हैं । यह सब नियमपूर्वक है । अतः यहाँ तो जितने हैं न उतने ही रहते हैं, जब गिनो तब उतने के उतने ही रहते हैं ।
व्यवहार यानी कोई भी नाम पड़ा, गुलाब नाम पड़ा, आलू नाम पड़ा, वायुकाय नाम पड़ा, ये सभी व्यवहार में आ गए। लेकिन जिनका नाम नहीं पड़ा है, वे अभी तक व्यवहार में नहीं आए हैं !
प्रश्नकर्ता : वे जीव कहाँ पर हैं?
दादाश्री : वे दूसरी जगहों पर हैं । यह बात बहुत समझने जैसी है, बहुत गहरी बात है । लेकिन हम इतनी अधिक गहराई में नहीं जाएँगे, नहीं तो आत्मा चूक जाएँगे। यह सब ज्ञानीपुरुष का काम है! आपको तो इतना समझ लेना है कि यह हक़ीक़त क्या है। वापस यदि इस सूक्ष्म को याद रखने जाएँगे तो मूल जो करना है, वह रह जाएगा। आप अपने आप ही समझ लेना न, और आपको खुद को ही यह सब दिखेगा। हम जो दिखा रहे हैं उस तरह से चलते रहोगे तो आप भी उस स्टेशन पर आ पहुँचोगे,