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आप्तवाणी-८
हुआ है। जगत् तो अनादि अनंत है। और ये मनुष्य हैं, और जीव मात्र हैं, ये सभी अनादि अनंत हैं। पेड़ में जीव हो या छोटे से छोटे जीव हों, वे सभी अनादि अनंत हैं ! इसमें कुछ भी कम - ज़्यादा नहीं हुआ है, जितने थे उतने ही हैं!
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एक भी जीव बढ़ा नहीं है और एक भी जीव घटा नहीं है, ऐसी यह दुनिया है । एक परमाणु भी बढ़ा नहीं है, घटा नहीं है । जला दे, चाहे कुछ भी करे, फिर भी अनादि से एक भी परमाणु घटता नहीं है, न ही बढ़ता है, ऐसी यह दुनिया है ।
यानी आत्मा आया भी नहीं है और गया भी नहीं है । यह ' आयागया', यह सारी बुद्धि की भाषा है, जब ज्ञानभाषा में आ जाएगा न तब उसे खुद को लगेगा कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था । उसे बुद्धि से यह सब भासित होता है। यह बुद्धि जाए, अहंकार जाए न, तो खुद मुक्त ही है। इस बुद्धि और अहंकार से सबकुछ खड़ा हो गया है, इसलिए यह सब दिखता है।
संयोगों में बिलीफ़ की आँटी, कौन निकाले ?
मनुष्य बाहर निकलता है तो परछाई कहाँ से आती है ? सभी संयोगों के कारण। सूर्य का संयोग मिल जाए तो परछाई उत्पन्न हो जाती है, दर्पण का संयोग मिल जाए तो प्रतिबिंब उत्पन्न हो जाता है। यानी यह सब संयोगों के कारण हुआ है और इसलिए पूरी बिलीफ़ बदल गई है । 'स्वरूप' तो वही का वही है, लेकिन बिलीफ़ बदल गई है कि यह क्या हो गया? यह चिड़िया दर्पण में चोंच नहीं मारती ? चिड़िया दर्पण में चोंच मारती है न? अब मनुष्य ऐसा नहीं करता । क्योंकि वह जानता है कि यह तो मेरा ही फोटो है। लेकिन चिड़िया की बिलीफ़ बदल गई है कि यह दूसरी चिड़िया आई है, इसलिए उसे चोंच मारती रहती है । लेकिन बहुत दिनों के अनुभव के बाद फिर वह बिलीफ़ टूट जाती है। इसी प्रकार यह बिलीफ़ ही बदली हुई है। पूरी बिलीफ़ ही रोंग हो गई है, इसलिए अहंकार उत्पन्न हो गया है और इसीलिए बुद्धि उत्पन्न हो गई है। और बुद्धि उत्पन्न हो गई, इसलिए बुद्धि
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