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आप्तवाणी-८
है ही नहीं। खुद' उसमें ज्ञाता-दृष्टा रहता है, परन्तु तन्मयाकार नहीं रहता। 'आत्मा' उनमें मिक्स नहीं हो गया है। आत्मा मिलावटवाला नहीं है, आत्मा निर्भेल (मिलावट रहित) है!
आत्मा पहचाना कैसे जाए? प्रश्नकर्ता : आत्मा देखा जा सकता है? या कल्पना ही है?
दादाश्री : हम सबको हवा दिखती नहीं है, फिर भी आपको पता चलता है न कि हवा है? या नहीं पता चलता? इत्र की सुगंध आती है, लेकिन वह सुगंध दिखती है क्या? फिर भी हमें इस बात का पक्का पता चलता है न कि यह 'इत्र है'? इसी प्रकार 'आत्मा है' उसका हमें यक़ीन होता है! जैसे सुगंध पर से इत्र को पहचाना जा सकता है, उसी प्रकार आत्मा को भी उसके सुख पर से पहचाना जा सकता है, फिर यह पूरा जगत् जैसा है वैसा दिखता है। उस पर से पक्का पता चल जाता है कि आत्मा के अनंत गुण हैं। अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत सुखधाम, ये तो कितने सारे गुण हैं! आत्मा खुद ही परमात्मा है, परन्तु 'खुद' को 'इसका' भान होना चाहिए। एक बार भान हो गया कि फिर, सभी गुण प्रकट हो जाएँगे। अनंत भेद से (अनंत रीति से) आत्मा है, अनंत गुणधाम है! उसका एक भी गुण जाना नहीं है आपने अभी तक।
आत्मा त्रिकाली वस्तु है और अनंत सुख का धाम है, जब कि ये लोग यहाँ पर आम में सुख ढूँढने निकले हैं, बाज़ारू आम में, 'मार्केट मटीरियल्स' में! यह आँख से जो दिखता है, कान से जो सुनाई देता है, नाक से सुगंध आती है, जीभ से चखते हैं, यहाँ पर स्पर्श होता है, वे सभी 'मार्केट मटीरीयल्स' हैं। 'ज्ञानी' के परिचय से, अनंत शक्तियाँ व्यक्त होती है प्रश्नकर्ता : आत्मा में अनंत शक्तियाँ हैं क्या?
दादाश्री : हाँ। लेकिन वे शक्तियाँ 'ज्ञानीपुरुष' के माध्यम से प्रकट होनी चाहिए। जैसे कि जब आप स्कूल में गए थे, तब वहाँ पर सिखाया