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आप्तवाणी-८
है। उसे कहीं भी जाना-आना होता ही नहीं है। और जब इस शरीर का नाश होता है, तब आत्मा को कहाँ जाना है, वह उसके खुद के अधिकार में नहीं है। वह भी ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' के ताबे में है। यानी जहाँ पर एविडेन्स ले जाएँ, वहाँ पर उसे जाना पड़ता है। इसमें, 'परमानेन्ट' वस्तु सिर्फ आत्मा ही है, बाकी सबकुछ टेम्परेरी है। मन-बुद्धिचित्त और अहंकार सबकुछ ही टेम्परेरी है। और आत्मा तो ऐसा है कि, वह इस शरीर से बिल्कुल अलग है। जैसे यह कपड़ा और मेरी देह अलग ही है न? उतने ही ये देह और आत्मा जुदा हैं, बिल्कुल जुदा हैं।
कुदरत के कितने ही एडजस्टमेन्ट्स प्रश्नकर्ता : मृत्यु के समय जब आत्मा एक देह छोड़ रहा हो, तब वह दूसरी देह में जाने से पहले कहाँ, कितने समय तक और किस तरह से रहता है? दूसरी देह में जाने में हर एक जीव को कितना समय लगता
दादाश्री : उसे बिल्कुल भी समय नहीं लगता। यहाँ इस देह में भी होता है और वहाँ योनि में प्रवेश करना शुरू हो जाता है। मरनेवाला यहाँ बडौदा में और योनि वहाँ दिल्ली में होती है, तो आत्मा योनि में भी होता है और यहाँ इस देह में भी होता है। यानी कि इसमें टाइम ही नहीं लगता। देह के बगैर थोड़ी देर के लिए भी नहीं रह सकता है।
प्रश्नकर्ता : यानी इस देह को छोड़ने में और दूसरी देह ग्रहण करने में, इन दोनों के बीच में कितना समय लगता है?
दादाश्री : बिल्कुल भी समय नहीं लगता। यहाँ पर भी होता है, इस देह में से निकल रहा होता है यहाँ से और वहाँ योनि में भी हाज़िर होता है। क्योंकि यह टाइमिंग है, वीर्य और रज का संयोग होता है उस घड़ी। यहाँ पर देह छूटनेवाली होती है, तब वहाँ पर वह संयोग होता है। वह सब इकट्ठा हो जाए, तब यहाँ से जाता है। वर्ना वह यहाँ से जाएगा ही नहीं, क्योंकि यदि यहाँ से चला जाएगा तो वह खाएगा क्या? वहाँ योनि में गया लेकिन खुराक क्या खाएगा? पुरुष का वीर्य और माता का रज,