________________
४०
आप्तवाणी-८
दादाश्री : इन मनुष्यों के अलावा, दूसरे सभी जीव जो कर्म करते हैं, उसका उन्हें फल नहीं मिलता। इन योनियों में वे कर्म पूरा करके छूट जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : तो जंतु का दूसरा जन्म कौन-सा आता है? जंतु, वह जंतु ही रहेगा?
दादाश्री : नहीं। जंतु में से दूसरा जन्म होता है, तीसरा जन्म होता है। वह दूसरी योनि में जाता है, लेकिन दिनों-दिन उनके कर्म छूटते जाते हैं। वह बँधे हुए कर्मों को भोगता है, वह नये कर्म नहीं बाँध सकता। सिर्फ ये मनुष्य ही नये कर्म बाँध सकते हैं। देवी-देवता भी कर्म भोगते हैं। देवीदेवता क्रेडिट भोगते हैं और ये जानवर डेबिट भुगतते हैं, और ये मनुष्य क्रेडिट और डेबिट दोनों भोगते हैं। परन्तु मनुष्य भोगते भी हैं और फिर कर्ता भी हैं, इसलिए नये कर्म बाँधते हैं!
प्रश्नकर्ता : यह जो देह है, वह कर्मों का ही परिणाम है न? दादाश्री : हाँ, कर्मों का ही परिणाम है।
प्रश्नकर्ता : कर्मों की संपूर्ण निर्जरा (आत्मप्रदेश में से कर्मों का अलग होना) होनी चाहिए न? ।
दादाश्री : संपूर्ण निर्जरा हो जाए, तब तो सिद्धक्षेत्र में चला जाता है। परन्तु जब वह शुद्ध चित्त हो जाएगा, तब कर्मों की निर्जरा हो चुकी, ऐसा कहा जाएगा!
डिस्चार्ज के समय, अज्ञानता से चार्ज जैसे बेटरी में सेल होते हैं न, वे चार्ज होते हैं, उसी तरह यह देह भी चार्ज हो चुका है। देह में चेतन है ही नहीं। चेतन तो भीतर में अंदर है, चेतन आत्मा में ही है। देह तो चार्ज हो चुका चेतन है!
मनुष्य में सोने की भी शक्ति नहीं है, जागने की भी शक्ति नहीं है, जाने की भी शक्ति नहीं है, आने की भी शक्ति नहीं है, किसी भी