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आप्तवाणी-८
दादाश्री : आपका कहना सच है, ऐसा कभी अपवाद रूप से होता है कि नाड़ी फिर से चलने लगती है। तब डॉक्टरों को मन में क्या होता है कि यह तो फिर से जीव आ गया। लेकिन कुछ परिस्थितियों में ही ऐसा होता है। तब वह जीव यहाँ तालू में चढ़ जाता है। हृदय भले ही बंद हो गया हो, लेकिन जीव यहाँ तालू में चढ़ जाता है। अतः जब वह तालू में से वापस उतरता है तो हृदय वापस धड़कने लग जाता है, ऐसा होता है। तब फिर डॉक्टर भी सोच में पड़ जाते हैं। लेकिन वह नया जीव नहीं आता। इस देह में फिर से जीव नहीं आता अथवा तो शरीर में दूसरा आत्मा प्रवेश नहीं करता। वही का वही आत्मा अभी तक पूरा-पूरा बाहर नहीं निकला है। यह हार्ट से ऊपर तक, इतने भाग में से निकल गया है और ऊपर चढ़ गया है। यहाँ पर तालू में ब्रह्मरंध्र है, जिसे दशम स्थान कहते हैं, वहाँ पर चढ़ जाता है। यानी देह में अगर जीव रह गया हो, तो फिर से ऐसा हो सकता है। कभी-कभी ही ऐसा होता है, कहीं बार-बार नहीं होता, अपवाद रूप में हो जाता है। किसीको साँप ने काटा हो, या फिर पानी में एकदम गिर गया हो, उस घड़ी उसका जीव यहाँ ऊपर, ब्रह्मरंध में चढ़ जाता है। तो फिर उतारना मुश्किल हो जाता है। इस काल में उतारना नहीं आता। सहज रूप से अपने आप यदि उतर जाए तो ठीक है, तब ऐसा लगता है कि मुर्दे में फिर से जीव आ गया। बाकी ऐसा होता नहीं है।
मृत्यु यानी क्या? मृत्यु के बाद क्या? प्रश्नकर्ता : मृत्यु क्या है?
दादाश्री : मृत्यु तो ऐसा है न, यह कमीज़ सिलवाई, तब कमीज़ का जन्म हुआ न, और यदि जन्म हुआ तो मृत्यु हुए बगैर रहेगी ही नहीं। कोई भी वस्तु जन्म लेती है तो उसकी मृत्यु अवश्य होती है। और आत्मा अजन्मा-अमर है, उसकी मृत्यु होती ही नहीं। यानी जितनी वस्तुएँ जन्म लेती हैं, उनकी मृत्यु अवश्य होती है और मृत्यु है तो जन्म होगा। अतः जन्म के साथ मृत्यु जोइन्ट ही है। जहाँ जन्म है, वहाँ पर मृत्यु अवश्य है ही।